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Wednesday, December 17, 2014

भारतीय मानव अंतरिक्ष अभियान सफल

भारतीय मानव अंतरिक्ष अभियान सफल 
युदस :अंतरिक्ष में मानवीय पदार्पण के भारतीय लक्ष्य की ओर नन्हें पग बढ़ाते हुए, आज इसरो ने अपने सबसे भारी प्रक्षेपण वाहन जीएसएलवी एमके-3 के प्रक्षेपण के साथ ही चालक दल मॉड्यूल को वातावरण में पुन: प्रवेश कराने का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया। आज प्रात: नौ बजकर 30 मिनट पर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र की दूसरी प्रक्षेपण पट्टी (लॉन्च पैड) से इसके प्रक्षेपण के ठीक 5.4 मिनट बाद मॉड्यूल 126 किलोमीटर की ऊंचाई पर जाकर रॉकेट से अलग हो गया और फिर समुद्र तल से लगभग 80 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी के वातावरण में पुन: प्रवेश कर गया। 
Ratnakar Raj's photo.यह बहुत तीव्र गति से नीचे की ओर उतरा और फिर इंदिरा प्वाइंट से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर बंगाल की खाड़ी में उतर गया। इंदिरा प्वाइंट अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह का दक्षिणतम बिंदू है। एलवीएम3-एक्स की इस उड़ान के तहत इसमें सक्रिय एस 200 और एल 110 के प्रणोदक चरण हैं।इसके अतिरिक्त एक प्रतिरूपी ईंजन के साथ एक निष्क्रिय सी25 चरण है, जिसमें सीएआरई (वायुमंडलीय पुनः प्रवेश प्रयोगउपकरण चालक दल) इसके नीतभार के रूप में साथ गया है। 
इस प्रक्षेपण को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।  


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने अब तक के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-एमके3 को प्रक्षेपित किया है. इसका तात्पर्य है -
Ratnakar Raj's photo.1. अभी तक भारत दो टन के उपग्रह को अंतरिक्ष में भेज सकता था, किन्तु इस रॉकेट के प्रक्षेपण से आने वाले समय में चार टन के सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजा जा सकेगा. और सबसे बड़ी बात ये कि भारी उपग्रह के प्रक्षेपण करने के लिए अब भारत को दूसरे देशों पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। अर्थात आने वाले समय में भारत आत्म-निर्भर होगा, जिससे हमारा व्यय तो कम होगा ही साथ ही भारतीय वैज्ञानिकों का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।
2. इस रॉकेट को 160-170 करोड़ रुपए की लागत से बनाया गया है, जो विश्व की अन्य अंतरिक्ष एजेंसयों के अनुपात में व्यय केवल आधा ही है।  विश्व में होड़ सी लगी रहती है कि किस प्रकार से सस्ता और विश्वसनीय अंतरिक्ष मिशन को पूरा किया जाए।  भारत ने विश्व को अब ये 
सफलता पूर्वक करके दिखा दिया है। 
3. अंतरिक्ष में अपना दबदबा बनाने के लिए जैसे-जैसे भारत एक के बाद एक सफल छलांग लगा रहा है, 
अंतरिक्ष में भारत की साख बन रही है उसे देख कर लगता है कि एशिया में भारत जो चीन से सदा पीछे रहा है, किन्तु मंगलयान के बाद चीन से आगे बढ़ गया है। 
4. अब भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी दूसरे देशों के उपग्रह भेजने में उनकी सहायता कर सकेगी।  मंगलयान से लेकर चंद्रयान और जीएसएलवी-एमके 3 के प्रक्षेपण की सफलता के बाद अब दूसरे देश अपने व्यवसायिक उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए भारतीय अंतरिक्ष ऐजेंसी पर निर्भर करेंगें।
उसके दो कारण हैं – एक तो ये कि भारत के पास सस्ती तकनीक उपलब्ध है और दूसरा ये कि हमारी गुणवत्ता अब वैश्विक स्तर पर प्रमाणित हो चुकी है. अर्थात अरबों डॉलर के प्रक्षेपण व्यवसाय में भारत अपने लिए एक विश्वसनीय स्थान बना पाएगा।
5. इस सफलता के बाद आने वाले 10-15 वर्षों में भारत अपने अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में भेज सकेगा। 
आज की पीढ़ी में जो बच्चे अंतरिक्ष यात्री बनने की चाह रखते हैं, उनके लिए अब एक नया आयाम खुलेगा और उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।  इन्हीं बच्चों में से कोई न कोई भारत से अंतरिक्ष जाने वाला या वाली पहली अंतरिक्ष यात्री बन सकेगी।  जब वो दिन आएगा तो भारत चौथा देश होगा जो अपने बल पर अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्री भेज सकता है।  अब तक केवल रूस, चीन और अमरीका ही ये उपलब्धि अर्जित कर पाएं हैं। 
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Sunday, December 7, 2014

भारत का संचार उपग्रह जीसैट-16, प्रक्षेपण सफल

भारत का संचार उपग्रह जीसैट-16 सफलतापूर्वक प्रक्षेपित
संचार सेवाओं को विस्तार देने वाली भारतीय अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाते हुए नवीनतम उपग्रह जीसैट-16 का आज तड़के गुयाना फ़्रांस के कोरू प्रक्षेपण स्थल से एरियनस्पेस रॉकेट की सहायता से सफल प्रक्षेपण किया गया। मौसम दोष के चलते इस प्रक्षेपण में दो दिन का विलम्ब हुआ। तड़के दो बजकर दस मिनट पर विमान वीए221 के द्वारा एरिएन-5 की सफल उड़ान के 32 मिनट बाद उपग्रह को 'भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा' (जीटीओ) में प्रवेश करा दिया गया। 
जीसैट -16 के सफल प्रक्षेपण के लिए वैज्ञानिकों के यशगान में प्र.मं. मोदी ने कहा कि यह संचार उपग्रह हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक प्रमुख संपत्ति बन जाएगा। सभी भारतीयों को बधाई। 
Ariane 5 VA221 vehicle with GSAT-16 rolls out to the launch pad at Kourou space port in French Guiana on Sunday.प्रक्षेपण स्थल से एरियन श्रेणी के यानों द्वारा किया गया यह 221वां प्रक्षेपण है। एरियनस्पेस के अनुसार दोहरे रॉकेट अभियान के तहत प्रक्षेपित किया गया जीसैट-16, अपने सीधे प्रसारण टीवी-14 अंतरिक्ष यान के साथ चार मिनट बाद अंतरिक्ष में प्रवेश कर गया। जीसैट-16 में 48 'ट्रांसपांडर' लगे हैं और यह संख्या इसरो द्वारा बनाए गए, किसी भी संचार उपग्रह में लगाए गए ट्रांसपांडरों की संख्या से अधिक है। 'डायरेक्ट टीवी-14' अमेरिका में ‘डायरेक्ट-टू-होम टीवी’ के प्रसारण के लिए है।  
प्रक्षेपण के कुछ ही समय बाद कर्नाटक के हासन स्थित इसरो की ‘मुख्य नियंत्रण सुविधा' मा.कं.फै’ :नियंत्रक प्रतिष्ठान: ने जीसैट-16 का सञ्चालन और नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया व आरम्भिक जांच में उपग्रह ‘सामान्य स्थिति’ में पाया गया है। इसरो के अनुसार इसे कक्षा में ऊपर उठाने के प्रथम पग (ऑर्बिट रेजि़ंग) का निर्धारित समय कल तड़के तीन बजकर 50 मिनट है। यह प्रक्रिया उपग्रह को उसके निर्धारित स्थान पर अर्थात भूस्थतिक कक्षा में 55 डिग्री पूर्वी देशांतर पर और जीसैट-8, 
ISRO's GSAT-16 satellite launched, PM Narendra Modi calls it a 'major asset'आईआरएनएसएस-1ए एवं आईआरएनएसएस-1बी के साथ स्थापित करने का एक चरण है।
कोरू की भौगोलिक स्थिति रणनीतिक दृष्टी से महत्वपूर्ण है। भूमध्य रेखा के पास स्थित होने के कारण यह स्थान भूस्थतिक कक्षक में भेजे जाने वाले विशेष अभियानों के लिए उपयुक्त है। एरियनस्पेस ने प्रक्षेपण के इस कार्यक्रम का समय बदलकर भारतीय समयानुसार तड़के दो बजकर नौ मिनट का कर दिया था, किन्तु कुछ ही घंटों बाद इसे एक बार फिर ‘इसी’ कारण स्थगित कर दिया गया। इसके बाद इसके प्रक्षेपण का समय आज तड़के के लिए रखा गया। 
अंतरिक्ष दर्पण प्रक्षेपण वीडिओ हेतु बटन दबाएँ 
https://www.youtube.com/watch?v=e9uYbb0hAps&index=22&list=PLD8A212A480412E57
https://www.youtube.com/watch?v=r16GMvd__-M&index=23&list=PLD8A212A480412E57
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Saturday, November 8, 2014

मध्यम दूरी मिसाइल अग्नि-2, परीक्षण सफल

आज भारत ने परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम, मध्यम दूरी की मिसाइल अग्नि-2 का सफलतापूर्वक प्रायोगिक परीक्षण किया। 2000 किलोमीटर से अधिक दूरी तक की मारक क्षमता रखने वाली, इस मिसाइल का यह परीक्षण, ओडिशा के तट से परे स्थित, व्हीलर द्वीप से सेना के प्रायोगिक परीक्षण के अंतर्गत किया गया। रक्षा अधिकारियों ने कहा, ‘‘सतह से सतह पर मार सकने वाली मिसाइल का प्रायोगिक परीक्षण, प्रात: 9 बजकर 40 मिनट पर, एकीकृत परीक्षण परिसर 'आईटीआर' के प्रक्षेपण परिसर-4 से गतिमान प्रक्षेपक के माध्यम किया गया।’’ 
इस प्रायोगिक परीक्षण को पूरी तरह सफल बताते हुए आईटीआर परिसर के निदेशक एमवीकेवी प्रसाद ने कहा, ‘‘यह सेना द्वारा किया गया, एक प्रायोगिक परीक्षण था।’’ अधिकारियों ने कहा कि अग्नि-2 मध्यवर्ती दुरी की प्रक्षेपिक मिसाइल (आईआरबीएम) को सेवाओं में पहले ही शामिल किया जा चुका है और आज का परीक्षण सेना के विशेष रूप से गठित रणनीतिक बल कमान द्वारा किया गया है। यह रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा उपलब्ध करवाए गए, उपकरणों के साथ किए जाने वाले प्रशिक्षण अभ्यास का भाग है। 
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Wednesday, October 15, 2014

भारतीय नौवहन उपग्रह 'IRNSS 1सी' सफलतापूर्वक प्रक्षेपित

Photo: Congrats to the scientists at ISRO for the successful launch of navigation satellite IRNSS 1C. It is a matter of immense pride & joy.
भारतीय नौवहन उपग्रह 'IRNSS 1सी' सफलतापूर्वक प्रक्षेपित भारत ने आज सफलतापूर्वक इसरो के पीएसएलवी सी 26 के द्वारा आईआरएनएसएस उपग्रह को प्रक्षेपित कर दिया। उपग्रह को पूर्व निर्धारित समयानुसार तड़के एक बजकर 32 मिनट पर प्रक्षेपित किया गया। 'वैश्विक स्थिति निर्धारण प्रणाली' के 
सात उपग्रहों की श्रृंखला में से तीसरा उपग्रह है। नौवहन स्वावलम्बन हेतु 4 उपग्रह आवश्यक हैं। इसकी विस्तृत जानकारी 3 दिन पूर्व 'उलटी गणना' http://antarikshadarpan.blogspot.in/2014/10/blog-post.html हम दे ही चुके है। 
प्रक्षेपण का वीडिओ हमारे दूरदर्पण चैनल के अंतरिक्ष दर्पण 'playlist' से यहाँ संलग्न है- 
https://www.youtube.com/watch?v=Oc-DCCwrNjU&index=21&list=PLD8A212A480412E57 
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Monday, October 13, 2014

नौवहन के उपग्रह प्रक्षेपण की उल्टी गणना

नौवहन 'IRNSS' के उपग्रह के प्रक्षेपण की उल्टी गणना आरम्भ 
भारत के नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस 1 सी के प्रक्षेपण की श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र में प्रात: छह बजकर 32 मिनट पर आज प्रात: छह बजकर 32 मिनट पर उल्टी गणना आरम्भ हो गई। यह अमेरिका के 'ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम' की भाँति 'वैश्विक स्थिति निर्धारण प्रणाली' के सात उपग्रहों की श्रृंखला में से तीसरा उपग्रह है। इसे पीएसएलवी सी 26 के माध्यम प्रक्षेपित किया जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बताया कि प्रक्षेपण प्राधिकार बोर्ड (एलएबी) से रविवार को इस निमित्त स्वीकृति मिल चुकी है। https://www.youtube.com/watch?v=3LtlhrBeMmw&list=PLD8A212A480412E57&index=20 
अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए 67 घंटे की उल्टी गणना अबाध गति से जारी है। भारतीय समयानुसार 16 अक्तूबर को तड़के एक बजकर 32 मिनट पर उपग्रह का प्रक्षेपण निर्धारित है। पूर्व में इसे 10 अक्तूबर को प्रक्षेपित किया जाना था, किन्तु तकनीकी दोष के चलते इसे स्थगित कर दिया गया। प्रक्षेपण के समय 1,425 किलोग्राम भार वाले आईआरएनएसएस 1 सी को 'उप भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा' 'सब जीओसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट' (सब जीटीओ) में स्थापित किया जाएगा। अमेरिका के 'वैश्विक स्थिति निर्धारण प्रणाली' (GPS) की भांति ही क्षेत्रीय नौवहन प्रणाली स्थापित करने की आकांक्षाओं के तहत, इसरो की योजना भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) में सात उपग्रह भेजने की है। 
श्रृंखला के पहले दो उपग्रह आईआरएनएसएस 1ए और और आईआरएनएसएस 1 बी हैं, जो क्रमश: एक जुलाई 2013 और इस वर्ष चार अप्रैल को श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किए गए थे। इसरो के अधिकारियों ने कहा कि आईआरएनएसएस के अभियान को आरम्भ करने के लिए सात उपग्रहों में से इसरो को कम से कम चार को प्रक्षेपित करने की आवश्यकता है। भारत द्वारा विकसित किया जा रहा आईआरएनएसएस देश में और क्षेत्र में सटीक स्थिति सूचना सेवा उपलब्ध कराएगा। इसका क्षेत्र इसकी सीमा रेखा से 1,500 किलोमीटर परे तक विस्तारित होगा, जो प्राथमिक सेवा क्षेत्र है। आईआरएनएसएस अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम, रूस के ग्लोनास और यूरोप के गैलिलियो की भांति ही है। चीन और जापान के पास भी इसी तरह की प्रणाली ‘बेईदू’ और ‘कासी जेनिथ’ हैं। 
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Thursday, September 25, 2014

मंगल परिक्रमा मिशन: ग्रह के प्रथम चित्र

मंगल परिक्रमा मिशन: ग्रह के प्रथम चित्र
मंगल से मंगलयान ने भेजी भारत के लिए पहली तस्‍वीर भारत के मंगल परिक्रमा मिशन (मंपमि/एमओएम) ने पहले ही प्रयास में लाल ग्रह की कक्षा में स्थापित होने का नया इतिहास रचने के दूसरे दिन आज मंगल ग्रह के प्रथम चित्र भेजे हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने लाल ग्रह के चित्रों के साथ ट्विट किया, ''मंगल के प्रथम चित्र, 7300 किलोमीटर की ऊंचाई से ...वहां का दृश्य सुंदर है।’’ अंतरिक्ष यान ‘‘मंगलयान’’ इस समय कक्षा में मंगल ग्रह का चक्कर लगा रहा है और मंगल ग्रह से इसकी न्यूनतम दूरी 421.7 किलोमीटर है तथा अधिकतम दूरी 76,993.6 किलोमीटर है। इसरो ने यह जानकारी दी।
भारत के मार्स ओर्बिटर मिशन ने लाल ग्रह मंगल की पहली तस्वीरें भेजींकक्षा का झुकाव मंगल ग्रह की भूमध्यवर्ती क्षेत्र में 150 डिग्री के वांछित स्तर पर है। इस कक्षा में मंगलयान को मंगल ग्रह का एक चक्कर लगाने में 72 घंटे, 51 मिनट और 51 सेकेंड का समय लगता है। इसरो की विज्ञप्ति के अनुसार आने वाले सप्ताहों में मंगलयान के पांच वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करते हुए अंतरिक्ष यान का मंगल ग्रह की कक्षा में पूरा परीक्षण किया जाएगा। इसे भी देखें -

भारत का मंगलकार्य सफल

भारत का मंगलकार्य सफल 
युदस: विश्व गुरु सार्थक हुआ, भारत के वैज्ञानिकों ने इतिहास रचा, युग दर्पण ने चोपाई की नई व्याख्या: मंगल भुवन अमंगल हारी अर्थात जो मंगल करता है वे मंगल की कृपा पाने में प्रथम बार में सफल हुए, जो अमंगल करता थे, वो हारते रहे।
अंतरिक्ष यात्रा 10 माह विडिओ में दर्शाया गया :-
https://www.youtube.com/watch?v=lMmyEJiOB-8&index=17&list=PLD8A212A480412E57
9 माह 23 दिवस की अंतरिक्ष यात्रा, का मार्ग। .... 
मंपमि .... प्रक्षेपित किया गया था। यह एक दिसंबर को पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण क्षेत्र को पार कर गया था।
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Tuesday, September 23, 2014

भारत का मंगलकार्य सफल

भारत का मंगलकार्य सफल 
युदस: विश्व गुरु सार्थक हुआ, भारत के वैज्ञानिकों ने इतिहास रचा, युग दर्पण ने चोपाई की नई व्याख्या: मंगल भुवन अमंगल हारी अर्थात जो मंगल करता है वे मंगल की कृपा पाने में प्रथम बार में सफल हुए, जो अमंगल करता थे, वो हारते रहे।
अंतरिक्ष यात्रा 10 माह विडिओ में दर्शाया गया :-
https://www.youtube.com/watch?v=lMmyEJiOB-8&index=17&list=PLD8A212A480412E57
9 माह 23 दिवस की अंतरिक्ष यात्रा, का मार्ग। 
ट्रांस मंगल ग्रह इंजेक्शन (टीएमआई), 1 दिसंबर, 2013 को 0:49 बजे (आईएसटी) पर आरम्भ होकर, अंतरिक्ष यान बाहर मंगल ग्रह स्थानांतरण प्रक्षेपवक्र (MTT) में ले जाया गया। टीएमआई के साथ अंतरिक्ष यान के पृथ्वी की परिक्रमा का चरण समाप्त हो गया है और अंतरिक्ष यान सूर्य के चारों ओर लगभग 9 माह 23 दिवस की अंतरिक्ष यात्रा के पश्चात् मंगल ग्रह की परिधि में अब सतह पर है 
Trans Mars Injection (TMI), carried out on Dec 01, 2013 at 00:49 hrs (IST) has moved the spacecraft in the Mars Transfer Trajectory (MTT).With TMI the Earth orbiting phase of the spacecraft ended and the spacecraft is now on a course to encounter Mars after a journey of about 10 months around the Sun 
समस्त विवरण भारत ने आज अपना अंतरिक्षयान मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर इतिहास रच दिया। यह उपलब्धि अर्जित करने के बाद भारत विश्व में प्रथम ऐसा देश बन गया, जिसने अपने प्रथम प्रयास में ही ऐसे अंतरग्रही अभियान में सफलता प्राप्त की है। प्रात: 7 बज कर 17 मिनट पर 440 न्यूटन लिक्विड एपोजी मोटर (एलएएम), यान को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट कराने वाले उत्प्रेरक के साथ तेजी से सक्रिय हुयी, जिससे मंगल परिक्रमा (ऑर्बिटर) मिशन (एमओएम) यान की गति इतनी धीमी हो जाए, कि लाल ग्रह उसे खींच ले। मिशन की सफलता की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा ‘‘एमओएम का मंगल से मिलन।’’
विश्व गुरु सार्थक हुआएक ओर मंगल मिशन इतिहास के पृष्ठों में स्वयं को स्वर्ण अक्षरों में अंकित करा रहा था, वहीं दूसरी ओर यहां स्थित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नियंत्रण केंद्र में अंतिम पल अति व्याकुलता भरे थे। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के साथ मंगल मिशन की सफलता के साक्षी बने, मोदी ने कहा ‘‘विषमताएं हमारे साथ रहीं और मंगल के 51 मिशनों में से 21 मिशन ही सफल हुए हैं,’’ किन्तु ‘‘हम सफल रहे।’’ प्रसन्नता से फूले नहीं समा रहे प्रधानमंत्री ने, इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन की पीठ थपथपाई और अंतरिक्ष की यह महती उपलब्धि अर्जित कर इतिहास रचने के लिए, भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को बधाई दी। ‘‘मंगलयान’’ की सफलता के साथ ही भारत प्रथम प्रयास में मंगल पर जाने वाला 'विश्व का प्रथम देश' बन गया है। यूरोपीय, अमेरिकी और रूसी यान लाल ग्रह की कक्षा में या तल पर पहुंचे हैं किन्तु कई प्रयासों के बाद।
मंगल यान को लाल ग्रह की कक्षा खींच सके, इसके लिए यान की गति 22.1 किमी प्रति सेकंड से घटा कर 4.4 किमी प्रति सेकंड की गई और फिर यान में डाले गए निर्देश (कमांड) द्वारा मंगल परिक्रमा प्रवेश ‘‘मार्स ऑर्बिटर इन्सर्शन’’ (एमओई) की प्रक्रिया संपन्न हुई। यह यान सोमवार को मंगल के अतिनिकट पहुंच गया था। जिस समय एमओएम कक्षा में प्रविष्ट हुआ, पृथ्वी तक इसके संकेतों को पहुंचने में प्राय: 12 मिनट 28 सेकंड का समय लगा। ये संकेत नासा के कैनबरा और गोल्डस्टोन स्थित गहन अंतरिक्ष संजाल (डीप स्पेस नेटवर्क) स्टेशनों ने ग्रहण किये और आंकड़े वास्तविक समय (रीयल टाइम) पर यहां इसरो स्टेशन भेजे गए। अंतिम पलों में सफलता का प्रथम संकेत तब मिला, जब इसरो ने घोषणा की कि भारतीय मंगल परिक्रमा (ऑर्बिटर) के इंजनों के प्रज्ज्वलन की पुष्टि हो गई है। इतिहास रचे जाने का संकेत देते हुए इसरो ने कहा ‘‘मंगल ऑर्बिटर के सभी इंजन शक्तिशाली हो रहे हैं। प्रज्ज्वलन की पुष्टि हो गई है।’’ मुख्य इंजन का प्रज्ज्वलित होना महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह प्राय: 300 दिन से निष्क्रिय था और सोमवार को मात्र 4 सेकेंड के लिए सक्रिय हुआ था।
यह स्थिति पूर्णतया ‘‘इस पार या उस पार’’ वाली थी, क्योंकि समस्त कौशल के बाद भी एक तुच्छ सी भूल ऑर्बिटर को अंतरिक्ष की गहराइयों में धकेल सकती थी। यान की पूर्ण कौशल युक्त प्रक्रिया, मंगल के पीछे हुई; जैसा कि पृथ्वी से देखा गया। इसका अर्थ यह था कि मंगल परिक्रमा प्रवेश प्रज्ज्वलन में लगे, 4 मिनट के समय से लेकर प्रक्रिया के निर्धारित समय पर समापन के तीन मिनट बाद तक, पृथ्वी पर उपस्थित वैज्ञानिक दल यान की प्रगति नहीं देख पाए। ऑर्बिटर अपने उपकरणों के साथ कम से कम 6 माह तक दीर्घ वृत्ताकार पथ पर घूमता रहेगा और उपकरण एकत्र आंकड़े पृथ्वी पर भेजते रहेंगे। मंगल की कक्षा में यान को सफलतापूर्वक पहुंचाने के बाद भारत लाल ग्रह की कक्षा या सतह पर यान भेजने वाला चौथा देश बन गया है। अब तक यह उपलब्धि अमेरिका, यूरोप और रूस को मिली थी। कुल 450 करोड़़ रुपये की लागत वाले मंगल यान का उद्देश्य लाल ग्रह की सतह तथा उसके खनिज अवयवों का अध्ययन करना तथा उसके वातावरण में मीथेन गैस की खोज करना है। पृथ्वी पर जीवन के लिए मीथेन एक महत्वपूर्ण रसायन है। इस अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण 5 नवंबर 2013 को आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से स्वदेश निर्मित पीएसएलवी रॉकेट से किया गया था। यह 1 दिसंबर 2013 को पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण से बाहर निकल गया था।
https://www.youtube.com/watch?v=jwHBMR8C6B0&index=87&list=PLDB2CD0863341092A
भारत का एमओएम न्यूनतम लागत वाला अंतरग्रही मिशन है। नासा का मंगल यान मावेन 22 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट हुआ था। भारत के एमओएम की कुल लागत मावेन की लागत का मात्र दसवां अंश है। कुल 1,350 किग्रा भार वाले अंतरिक्ष यान में पांच उपकरण लगे हैं। इन उपकरणों में एक संवेदक (सेंसर), एक रंगीन कैमरा और एक 'ताप छायांकन वर्ण-पट यंत्र' थर्मल इमैजिंग स्पेक्ट्रोमीटर शामिल है। संवेदक लाल ग्रह पर जीवन के संभावित संकेत मीथेन अर्थात मार्श गैस का पता लगाएगा। रंगीन कैमरा और 'ताप छायांकन वर्ण-पट यंत्र' लाल ग्रह की सतह का तथा उसमें उपलब्ध खनिज संपदा का अध्ययन कर आंकड़े जुटाएंगे। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने बताया कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और मावेन की टीम ने भारतीय यान के मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचने के लिए इसरो को बधाई दी है।
मंपमि 450 करोड़ रूपये की लागत वाला सबसे अल्प व्ययी अंतर ग्रहीय मिशन था और भारत इसके साथ ही विश्व में पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में अंतरिक्ष यान स्थापित करने वाला एकमात्र राष्ट्र बन गया है। जबकि यूरोपीय संघ, अमेरिकी और रूसी यान को इसके लिए कई बार प्रयास करने पड़े। मंगलयान कम से कम आगामी छह माह तक दीर्घवर्त्ताकार रूप में मंगल के चक्कर लगाएगा और अपने उपकरणों का उपयोग करते हुए पृथ्वी पर चित्र भेजेगा। मंगलयान को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में गत वर्ष पांच नवंबर को पीएसएलवी राकेट के माध्यम प्रक्षेपित किया गया था। तथा यह एक दिसंबर को पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण क्षेत्र को पार कर गया था।
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