ब्रह्मांड की विस्तृत समझ विकसित करने के लक्ष्य पर आधारित अपनी पहली अंतरिक्ष वेधशाला ‘एस्ट्रोसैट’ का भारत ने आज सफलतापूर्वक प्रक्षेपण कर दिया।
पीएसएलवी-सी30 के द्वारा यहां से प्रक्षेपित किया गया एस्ट्रोसैट अपने साथ छह विदेशी उपग्रह भी ले गया है, जिनमें से 4 अमेरिकी उपग्रह हैं। यह पहली बार है, जब भारत ने अमेरिकी उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं। ये उपग्रह सन फ्रांसिस्को की एक कंपनी के हैं। इन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की व्यवसायिक शाखा 'एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड' के साथ किए गए समझौते के तहत प्रक्षेपित किए गए हैं। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किए गए, इस प्रक्षेपण में इसरो के विश्वसनीय 'पोलर सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल' (पीएसएलवी) की मदद ली गई। अपनी 31वीं उड़ान के तहत, पीएसएलवी ने उड़ान शुरू होने के लगभग 25 मिनट बाद एस्ट्रोसैट और इसके छह सह-यात्रियों (उपग्रहों) को कक्षा में स्थापित कर दिया। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के अध्यक्ष किरण कुमार के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की तालियों और उत्साह के बीच इस उड़ान का शुभारम्भ हुआ।
इस प्रक्षेपण के मध्य केंद्रीय विज्ञान एवं तकनीक राज्य मंत्री वाईएस चौधरी उपस्थित थे। उन्होंने बाद में इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा कि अंतरिक्ष कार्यक्रम ‘‘हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री की सोच एवं योजना और उनके द्वारा रविवार को अमेरिका में कही गई बात के बिल्कुल अनुरूप’’ चल रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा देश संबंधों को उपयोग में ला रहा है और उन्हें सुदृढ़ कर रहा है। यही कारण है कि इसरो यहां से अमेरिकी उपग्रह प्रक्षेपित कर सका।’’ लगभग 1,513 किलोग्राम भार वाले एस्ट्रोसैट को पीएसएलवी-सी30 ने पहले 650 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित कक्षा में प्रवेश करवाया। इसके बाद अन्य छह उपग्रहों को लगभग तीन मिनट में अंतरिक्ष में प्रवेश करवाया गया। पीएसएलवी सी30 में एस्ट्रोसैट के साथ अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के जो उपग्रह ले जाए गए हैं, उनमें इंडोनेशिया का एलएपीएन-ए2 (स्वचालित पहचान तंत्र यानी एआईएस के तहत समुद्री निगरानी के लिए), कनाडा का समुद्री निगरानी नैनो उपग्रह एनएलएस-14 (ईवी9) शामिल हैं। कनाडा का यह उपग्रह आधुनिक एआईएस का उपयोग करता है।
इसरो ने कहा कि विश्व के सबसे विश्वसनीय प्रक्षेपण वाहनों में से एक, इस रॉकेट ने आज अपने 30वें सफल अभियान को मूर्त किया। यह अपने साथ अमेरिका के सन फ्रांसिस्को की कंपनी 'स्पायर ग्लोबल इंक' के चार नैनो उपग्रह ‘एलईएमयूआर’ भी ले गया है। ये 'रिमोट सेंसिंग' उपग्रह हैं, जिनका प्रमुख उद्देश्य जलयानों पर दृष्टी रखते हुए एआईएस के माध्यम समुद्री गुप्त जानकारी जुटाना है। इसके साथ ही, इसरो द्वारा प्रक्षेपित किए गए वैश्विक ग्राहकों जर्मनी, फ्रांस, जापान, कनाडा, ब्रिटेन समेत कुल 20 देशों के उपग्रहों की संख्या 51 हो गई है। प्रक्षेपण को सफल करार देते हुए इसरो के अध्यक्ष ने उत्साह के साथ कहा कि पीएसएलवी ने वैज्ञानिक समुदाय के लिए नई जानकारियाँ लेकर आने वाले अंतरिक्ष विज्ञान के एक ऐसे अभियान को परिणाम दिया है, जिस पर न केवल देश की बल्कि विश्व की दृष्टी हैं। 'मिशन कंट्रोल सेंटर' में एकत्र हुए लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं पूरे इसरो समुदाय को उनके द्वारा किए गए इस भव्य काम के लिए बधाई देता हूं।’’
पीएसएलवी की निरंतर 30वीं सफलता पर इसरो की प्रशंसा करते हुए चौधरी ने कहा कि यह देश के हर नागरिक के लिए गौरवपूर्ण क्षण है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं इन अभियानों का सहभागी रही इसरो की पूरी टीम (वर्तमान और भूतपूर्व) को बधाई देता हूं। यह 30वीं सफलता है और मुझे विश्वास है कि आप और भी बहुत से सफल प्रक्षेपणों को साकार कर देंगे।’’
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक कुन्ही कृष्णन ने कहा कि एस्ट्रोसैट अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में इसरो की ओर से विश्व को दिया गया एक ऐसा उपहार है, जो असीम परिश्रम के साथ जुटाया गया है। उन्होंने कहा कि इस अभियान के साथ इसरो व्यवसायिक प्रक्षेपणों में 50 वर्ष पूरे कर चुका है। उन्होंने कहा, ‘‘हम पीएसएलवी सी29 के एक अन्य व्यवसायिक अभियान की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें सिंगापुर के 6 उपग्रह होंगे। हम सभी को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि पीएसएलवी ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष बाजार में अपनी विशेष उपस्थिति अंकित कराई है।’’ एस्ट्रोसैट अभियान की अवधि 5 वर्ष की है और इसमें 4 "एक्सरे पेलोड, एक अल्ट्रावॉयलेट टेलीस्कोप और एक चार्ज पार्टिकल मॉनिटर" है।
वैज्ञानिक उपग्रह अभियान एस्ट्रोसैट में कई अद्भुत विशेषताएं भी हैं। जैसे कि यह एक ही उपग्रह के द्वारा विभिन्न खगोलीय पिंडों से जुड़ी अलग-अलग लंबाइयों वाली तरंगों के आंकड़े जुटा सकता है। इसरो के अनुसार, एस्ट्रोसैट ब्रह्मांड का अध्ययन विद्युतचुंबकीय स्पेक्ट्रम के प्रकाशीय, पराबैंगनी और उच्च उर्जा वाली एक्सरे के क्षेत्रों में करेगा जबकि अधिकतर अन्य वैज्ञानिक उपग्रह विभिन्न लंबाई की तरंगों के एक संकीर्ण फैलाव (नैरो रेंज) का ही अध्ययन करने में सक्षम होते हैं।
इस उपग्रह के संचालन की पूरी अवधि के मध्य इसका प्रबंधन बंगलूरू स्थित इसरो टेलीम्रिटी, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क के 'मिशन ऑपरेशन्स कॉम्पलेक्स' स्थित अंतरिक्षयान नियंत्रण केंद्र द्वारा किया जाएगा। एस्ट्रोसैट के वैज्ञानिक उद्देश्य 'न्यूट्रॉन स्टार्स' और 'ब्लैक होल' से युक्त 'बाइनरी स्टार सिस्टम' (दो तारों का समूह) की उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं का अध्ययन करना, न्यूट्रॉन स्टार्स के चुंबकीय क्षेत्र का आकलन और तारों के जन्म क्षेत्रों एवं हमारी आकाशगंगा से परे उपस्थित तारामंडलों की उच्च उर्जा प्रक्रियाओं का अध्ययन करना है।
इस अभियान का उद्देश्य आकाश में उपस्थित नए कम चमकीले एक्सरे स्रोतों की पहचान करना और पराबैंगनी क्षेत्र में ब्रह्मांड का सीमित गहरा क्षेत्रीय सर्वेक्षण करना है। अधिकारियों ने कहा कि इसरो के साथ जो चार भारतीय संस्थान पेलोड विकास में शामिल थे, उनके नाम हैं- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफीजिक्स, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफीजिक्स और रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट।
इसरो श्रीहरिकोटा से भारत की प्रथम समर्पित अंतरिक्ष वेधशाला, एस्ट्रोसैट, https://www.youtube.com/watch?v=8qrE11xFUAo&list=PLD8A212A480412E57&index=29
इसरो श्रीहरिकोटा से भारत की प्रथम समर्पित अंतरिक्ष वेधशाला, एस्ट्रोसैट, https://www.youtube.com/watch?v=8qrE11xFUAo&list=PLD8A212A480412E57&index=29
मिशन उपग्रह एसडीएससी, शार, पीएसएलवी-C30 / श्रीहरिकोटा से एस्ट्रोसैट के प्रक्षेपण https://www.youtube.com/watch?v=ngAg1UyNvbk&list=PLD8A212A480412E57&index=30
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