भारतीय मानव अंतरिक्ष अभियान सफल
युदस :अंतरिक्ष में मानवीय पदार्पण के भारतीय लक्ष्य की ओर नन्हें पग बढ़ाते हुए, आज इसरो ने अपने सबसे भारी प्रक्षेपण वाहन जीएसएलवी एमके-3 के प्रक्षेपण के साथ ही चालक दल मॉड्यूल को वातावरण में पुन: प्रवेश कराने का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया। आज प्रात: नौ बजकर 30 मिनट पर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र की दूसरी प्रक्षेपण पट्टी (लॉन्च पैड) से इसके प्रक्षेपण के ठीक 5.4 मिनट बाद मॉड्यूल 126 किलोमीटर की ऊंचाई पर जाकर रॉकेट से अलग हो गया और फिर समुद्र तल से लगभग 80 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी के वातावरण में पुन: प्रवेश कर गया।
यह बहुत तीव्र गति से नीचे की ओर उतरा और फिर इंदिरा प्वाइंट से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर बंगाल की खाड़ी में उतर गया। इंदिरा प्वाइंट अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह का दक्षिणतम बिंदू है। एलवीएम3-एक्स की इस उड़ान के तहत इसमें सक्रिय एस 200 और एल 110 के प्रणोदक चरण हैं।इसके अतिरिक्त एक प्रतिरूपी ईंजन के साथ एक निष्क्रिय सी25 चरण है, जिसमें सीएआरई (वायुमंडलीय पुनः प्रवेश प्रयोगउपकरण चालक दल) इसके नीतभार के रूप में साथ गया है।
इस प्रक्षेपण को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने अब तक के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-एमके3 को प्रक्षेपित किया है. इसका तात्पर्य है -
1. अभी तक भारत दो टन के उपग्रह को अंतरिक्ष में भेज सकता था, किन्तु इस रॉकेट के प्रक्षेपण से आने वाले समय में चार टन के सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजा जा सकेगा. और सबसे बड़ी बात ये कि भारी
उपग्रह के प्रक्षेपण करने के लिए अब भारत को दूसरे देशों पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। अर्थात आने वाले समय में भारत आत्म-निर्भर होगा, जिससे हमारा व्यय तो कम होगा ही साथ ही भारतीय वैज्ञानिकों का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।
2. इस रॉकेट को 160-170 करोड़ रुपए की लागत से बनाया गया है, जो विश्व की अन्य अंतरिक्ष एजेंसयों के अनुपात में व्यय केवल आधा ही है। विश्व में होड़ सी लगी रहती है कि किस प्रकार से सस्ता और विश्वसनीय अंतरिक्ष मिशन को पूरा किया जाए। भारत ने विश्व को अब ये
सफलता पूर्वक करके दिखा दिया है।
3. अंतरिक्ष में अपना दबदबा बनाने के लिए जैसे-जैसे भारत एक के बाद एक सफल छलांग लगा रहा है,
अंतरिक्ष में भारत की साख बन रही है उसे देख कर लगता है कि एशिया में भारत जो चीन से सदा पीछे रहा है, किन्तु मंगलयान के बाद चीन से आगे बढ़ गया है।
4. अब भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी दूसरे देशों के उपग्रह भेजने में उनकी सहायता कर सकेगी। मंगलयान से लेकर चंद्रयान और जीएसएलवी-एमके 3 के प्रक्षेपण की सफलता के बाद अब दूसरे देश अपने व्यवसायिक उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए भारतीय अंतरिक्ष ऐजेंसी पर निर्भर करेंगें।
उसके दो कारण हैं – एक तो ये कि भारत के पास सस्ती तकनीक उपलब्ध है और दूसरा ये कि हमारी गुणवत्ता अब वैश्विक स्तर पर प्रमाणित हो चुकी है. अर्थात अरबों डॉलर के प्रक्षेपण व्यवसाय में भारत अपने लिए एक विश्वसनीय स्थान बना पाएगा।
5. इस सफलता के बाद आने वाले 10-15 वर्षों में भारत अपने अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में भेज सकेगा।
आज की पीढ़ी में जो बच्चे अंतरिक्ष यात्री बनने की चाह रखते हैं, उनके लिए अब एक नया आयाम खुलेगा और उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। इन्हीं बच्चों में से कोई न कोई भारत से अंतरिक्ष जाने वाला या वाली पहली अंतरिक्ष यात्री बन सकेगी। जब वो दिन आएगा तो भारत चौथा देश होगा जो अपने बल पर अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्री भेज सकता है। अब तक केवल रूस, चीन और अमरीका ही ये उपलब्धि अर्जित कर पाएं हैं।
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