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Monday, January 20, 2020

YDMS👑प्रस्तुति... DD-Live YDMS दूरदर्पण, CD-Live YDMS चुनावदर्पण देश को समर्पित, दो यू-टयूब राष्ट्रीय चैनल.

👑आज अपने जन्म दिवस के अवसर पर, देश को समर्पित हैं, दो यू-टयूब राष्ट्रीय चैनल 
सकारात्मक सार्थक श्रेष्ठ चयनित समाचार का प्रतीक YDMS👑प्रस्तुति
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कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका; विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक

यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
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Thursday, October 6, 2016

भारत का संचार उपग्रह जीसैट-18 सफलतापूर्वक प्रक्षेपित

भारत का संचार उपग्रह जीसैट-18 सफलतापूर्वक प्रक्षेपित 
भारत का संचार उपग्रह जीसैट-18 सफलतापूर्वक प्रक्षेपिततिलक नदि। बेंगलूरू से प्राप्त विज्ञप्ति के अनुसार भारत का नवीनतम संचार उपग्रह जीसैट-18 फ्रेंच गुआना के कोउरू अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया, जिससे देश की संचार सेवाओं में दृढ़ता आएगी। जीसैट-18 आगामी दिनों में टेलीविजन, दूरसंचार, वीसैट और डिजिटल उपग्रह समाचार एकत्र करने जैसी सेवाएं प्रदान करेगा। प्रक्षेपण में एक दिन के विलंब के बाद यूरोपीय प्रक्षेपक रॉकेट एरियन-5 वीए-231 भारतीय समयानुसार मध्य रात्रि दो बजे अंतरिक्ष के लिए प्रस्थान हुआ और 32 मिनट सेकुछ अधिक की त्रुटिरहित उड़ान में अपने साथ गए सहयात्री स्काई मस्टर..2 उपग्रह का चक्कर लगाने के बाद उच्च शक्ति वाले जीसैट-8 को अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया। साथ गया स्काई मस्टर-2 उपग्रह ऑस्ट्रेलियाई परिचालक एनबीएन (नेशनल ब्रॉडबैंड नेटवर्क) से संबद्ध है। इसका प्रक्षेपण तो बुधवार को किया जाना था, किन्तु कोउरू में मौसम खराब होने के कारण से इसे 24 घंटे के लिए टाल दिया गया था। 
कोउरू दक्षिणी अमेरिका के उत्तर-पूर्व में स्थित एक फ्रांसीसी क्षेत्र है। जीसैट-18 ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वर्तमान में परिचालित 14 संचार उपग्रहों के बेड़े को दृढ़ता प्रदान की है। इसे ‘जिओसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट’ में प्रक्षेपित किया गया। उपग्रह के प्रक्षेण यान से विमुख होते ही कर्नाटक के हासन स्थित मुख्य नियंत्रण केंद्र ने तत्काल इसका सञ्चालन और निंयत्रण अपने हाथों में ले लिया। बेंगलूरू मुख्यालय से इसरो ने कहा कि उपग्रह की प्रारंभिक जांच में पता चला कि इसकी स्थिति ‘‘सामान्य’’ है। इसरो ने कहा, ‘‘32 मिनट 28 सेकंड की उड़ान के बाद जीसैट-18 एरियन-5 से अलग होकर भूमध्य रेखा के छह डिग्री कोण पर 251.7 किमी की पेरिजी (पृथ्वी से निकटतम बिन्दु) और 35,888 किलोमीटर की एपोजी (पृथ्वी से दूरस्थ बिन्दु) पर दीर्घवृत्ताकार जिओसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) में उपरी चरण पर चला गया ।’’ 
देखें - https://www.youtube.com/watch?v=0Yt4aB3qcyE&index=49&list=PLD8A212A480412E57 
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीसैट..18 के सफल प्रक्षेपण पर इसरो को बधाई दी। 
तिलक नदि। मोदी ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘संचार उपग्रह जीसैट-18 के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो को बधाई। हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए यह एक और मील का पत्थर है।’’ राष्ट्रपति के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर कहा गया, ‘‘संचार उपग्रह जीसैट-18 के सफल प्रक्षेपण पर इसरो को हार्दिक बधाई।’’ इसरो के अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने ‘‘एकदम सटीक’’ प्रक्षेपण के लिए एरियनस्पेस की सराहना करते हुए कहा, ‘‘जीसैट-18 हमारे लिए एक महत्वपूर्ण उपग्रह है जो पुराने होते वर्तमान उपग्रहों को बदलकर हमारे देश में महत्वपूर्ण संचार सेवाओं की निरंतरता बनाए रखने में हमें सक्षम बनाएगा।’’ 
जीसैट-18 यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा प्रक्षेपित किया जाने वाला इसरो का 20वां उपग्रह है तथा एरियनस्पेस प्रक्षेपक के लिए यह 280वां मिशन है। अपने भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए एरियन-5 रॉकेट पर निर्भर इसरो इस उद्देश्य के लिए जीएसएलवी एमके-3 विकसित कर रहा है। प्रक्षेपण के समय 3,404 किलोग्राम भार रखने वाला जीसैट-18 नॉर्मल सी बैंड, अपर एक्सटेंडेड सी बैंड और केयू बैंडों में सेवा प्रदान करने के लिए 48 संचार ट्रांसपोंडर लेकर गया है। मिशन नियंत्रण केंद्र से प्रक्षेपण देखने वाले इसरो प्रमुख प्रक्षेपण के तुरंत बाद चले गए और उनका संदेश बाद में उनके एक सहकर्मी ने पढ़कर सुनाया। 
सी बैंड, विस्तारित सी बैंड और केयू बैंडों में परिचालित उपग्रहों की सेवाओं की निरंतरता उपलब्ध कराने के लिए प्रारूपित किया गया जीसैट-18 उपग्रह प्रायः 15 वर्ष के सेवा मिशन पर गया है। इसरो ने कहा कि आगामी दिनों में जीसैट-18 को उपग्रह की प्रणोदक प्रणाली का चरणों में उपयोग कर भूस्थतिक कक्षा (भूमध्य रेखा से 36 हजार किमी ऊपर) में पहुंचाने के लिए इसे कक्षा में ऊपर उठाने का कार्य किया जाएगा। इसने कहा कि जीसैट-18 के दो सौर पैनल और दोनों एंटीना परावर्तक इसे कक्षा में उपर उठाने के बाद तैनात किए जाएंगे। उपग्रह को भूस्थतिक कक्षा में 74 डिग्री पूर्वी देशान्तर पर और इसे भारत के परिचालित भूस्थतिक उपग्रहों के साथ स्थापित किया जाएगा। इसके बाद, इसरो जीसैट-18 के साथ गए संचार उपग्रहों पर प्रायोगिक कार्य करेगा और कक्षा संबंधी सभी परीक्षण पूरे होने के बाद उपग्रह परिचालन उपयोग हेतु तैयार हो जाएगा। जीसैट-18 का सहयात्री स्काई मस्टर-2 कैलिफोर्निया के पालो आल्टो स्थित एएसएल (स्पेस सिस्टम्स लोराल) द्वारा निर्मित किया गया है। यह डिजिटल अंतराल को पाटने पर केंद्रित है, विशेष कर ऑस्ट्रेलिया के ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में। आगामी वर्ष के आरम्भ में एरियनस्पेस इसरो के दो और उपग्रहों- जीसैट-17 तथा जीसैट-11 का भी प्रक्षेपण करेगा। कुमार ने कहा, ‘‘इन उपग्रहों का प्रक्षेपण संबंधी कार्य उच्च चरण में है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जीसैट 17 हमारे उपग्रहों को बदलने के लिए एक महत्वपूर्ण उपग्रह है और जीसैट 11 ‘हाई थ्रूपुट’ उपग्रह की इसरो की पहली पीढ़ी होगा। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए ये दोनों आगामी प्रक्षेपण महत्वपूर्ण हैं।'' 
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Sunday, September 11, 2016

यह प्रक्षेपण स्वदेशी निम्नतापीय उच्च श्रेणी था और यह पहली परिचालन उड़ान है

श्रीहरिकोटा, 
भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में सफलता के नये शिखर को छूते हुए अत्याधुनिक मौसम उपग्रह इनसैट-3 डीआर को जीएसएलवी-एफ 05 के माध्सम से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया। इस 49.13 मीटर उंचे रॉकेट को यहां के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सायं प्रायः 4:50 बजे प्रक्षेपित किया गया और यह तत्काल नीले गगन की अथाह गहराइयों में विलीन हो गया तथा प्रायः 17 मिनट के बाद इस 2,211 किलोग्राम के इनसैट-3डीआर को भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा में स्थापित कर दिया। इससे पूर्व इस प्रक्षेपण को 40 मिनट के लिए संशोधित किया और इसका प्रक्षेपण सायं चार बजकर 50 मिनट निर्धारित किया गया। इस अंतरिक्ष स्टेशन के दूसरे प्रक्षेपण स्थल से इसे चार बजकर 10 मिनट पर छोड़ा जाना निर्धारित किया गया था। अधिकारियों ने कहा था कि इसके प्रक्षेपण में 40 मिनट की देरी हुयी। निम्नतापीय प्रक्रिया में देरी के कारण प्रक्षेपण चार बजकर 50 मिनट पर निर्धारित किया गया। इनसैट-3डीआर को इस प्रकार से तैयार किया गया है कि इसका जीवन 10वर्ष का होगा। यह पहले मौसम संबंधी मिशन को निरंतरता प्रदान करेगा तथा भविष्य में कई मौसम, खोज और बचाव सेवाओं में क्षमता का विस्तार करेगा। आज का यह मिशन जीएसएलवी की 10वीं उड़ान थी और इसका भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए बड़ा महत्व है क्योंकि यह स्वदेशी निम्नतापीय श्रेणी वाले रॉकेट की पहली परिचालन उड़ान है। पहले, निम्नतापीय स्तर वाले जीएसलवी के प्रक्षेपण विकासात्मक चरण के तहत होते थे। जीएसएलवी-एफ 05 ने स्वदेश में विकसित निम्नतापीय उच्च श्रेणी की सफलता की हैट्रिक भी बनाई है। इसरो के एक अधिकारी ने पीटीआई-भाषा को बताया, जीएसएलवी-एफ05 का आज का प्रक्षेपण अति महत्वपूर्ण है क्योंकि निम्नतापीय उच्च श्रेणी को ले जाने वाली जीएसएलवी की यह पहली परिचालन उड़ान है। पहले के प्रक्षेपण विकासात्मक होते थे। उपयोग किया गया इंजन रूसी था। आज का प्रक्षेपण स्वदेशी निम्नतापीय उच्च श्रेणी था और यह पहली परिचालन उड़ान है। वर्ष 2014 की सफलता के बाद भारत उन प्रमुख देशों के समूह में शामिल हो गया था जिन्होंने स्वदेशी निम्नतापीय इंजन और श्रेणी में सफलता अर्जित की है। आज की सफलता से उत्साहित इसरो प्रमुख एएस किरण कुमार ने वैज्ञानिकों के अपने समूह को एक और सफलता के लिए बधाई दी और कहा कि उपग्रह को कक्षा में स्थापित कर दिया गया है। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (शार) के निदेशक पी कुनिकृष्णन ने कहा कि आज का प्रक्षेपण सुव्यविस्थत था जहां उपग्रह को बहुत सटीक ढंग से भूस्थैतिक कक्षा में स्थापित किया गया। किरण कुमार ने कहा, अद्भुत काम के लिए इसरो के पूरे समूह को बहुत बधाई। इस काम को जारी रखिए। इनसैट-3डीआर के कक्षा में स्थापित होने के बाद कर्नाटक के हासन स्थित मुख्य नियंत्रण कक्ष के वैज्ञानिक कक्षा में इसके आरंभिक अभ्यास को कार्यरूप देंगे और बाद में इसे भू-स्थिर कक्षा में स्थापित करैंगे। इसरो के एक अधिकारी ने कहा कि इस प्रक्रिया में कुछ समय लग सकता है। 
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मौसम उपग्रह इनसैट 3DR को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया है। विशेष बात यह है कि GSLV से पहली बार इस मौसम उपग्रह को छोड़ा गया है। इस उपग्रह से बचाव सेवाओं के साथ-साथ मौसम से संबंधित जानकारियों को सटीकता से जाना जा सकेगा। इसरो ने श्रीहरिकोटा से इस प्रक्षेपण को संभव बनाया। https://www.youtube.com/watch?v=U_x85pn0J9A&list=PLD8A212A480412E57&index=47
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Tuesday, July 5, 2016

नासा का अंतरिक्ष यान जूनो बृहस्पति की कक्षा में प्रविष्ट

नासा का अंतरिक्ष यान जूनो बृहस्पति की कक्षा में प्रविष्ट 

नासा का अंतरिक्ष यान जूनो बृहस्पति की कक्षा में दाखिलतिलक। ह्यूस्टन से प्राप्त समाचारों के अनुसार नासा का सौर-ऊर्जा से संचालित अंतरिक्षयान जूनो पृथ्वी से प्रक्षेपण के पांच वर्ष बाद 80करोड किमी की दूरी पर आज बृहस्पति की कक्षा में प्रवेश कर गया। इस उपलब्धि को ग्रहों के राजा और हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति की उत्पत्ति और विकास को समझने की दिशा में एक बड़ा पग माना जा रहा है। अमेरिका में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उत्सव के वातावरण के बीच ही, जूनो के बृहस्पति की कक्षा में प्रवेश कर जाने की सूचना मिलने पर नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में इस अभियान के प्रसन्न नियंत्रक झूम उठे। 35 मिनट तक ईंजन के प्रज्वलन के बाद यह यान ग्रह के चारों ओर बनी तय कक्षा में प्रवेश कर गया। इस अभियान की लागत 1.1 अरब डॉलर है। जूनो अपने साथ नौ वैज्ञानिक उपकरण लेकर गया है। 
जूनो बृहस्पति की ठोस सतह के अस्तित्व का अध्ययन करेगा, ग्रह के अति शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र को मापेगा, गहरे वातावरण में उपलब्ध जल और अमोनिया की मात्रा नापेगा और इसकी प्रभातों का विश्लेषण करेगा। नासा ने कहा कि यह अभियान बड़े ग्रहों के निर्माण और सौरमंडल के शेष ग्रहों को एक साथ रखने में इनकी भूमिका को समझने में एक बड़ा पग उठाने में हमारी सहायता करेगा। बृहस्पति बड़े ग्रह के रूप में हमारे सामने एक प्रमुख उदाहरण है। वह अन्य नक्षत्रों के आसपास खोजे जा रहे अन्य ग्रह तंत्रों को समझने के लिए भी महत्ती जानकारी उपलब्ध करवा सकता है। जूनो अंतरिक्षयान को पांच अगस्त 2011 को फ्लोरिडा स्थित केप केनेवरेल एयरफोर्स स्टेशन से प्रक्षेपित किया गया था। 
नासा के प्रशासक चार्ली बोल्डेन ने कहा कि जूनो की सहायता से, हम बृहस्पति के व्यापक विकीरण वाले क्षेत्रों से जुड़े रहस्यों को सु लझाएंगे, इससे ग्रह की आंतरिक संरचना को तो समझने में सहयोग के साथ ही साथ बृहस्पति की उत्पत्ति और हमारे पूरे सौरमंडल के विकास को भी समझने में सहायता मिलेगी। जूनो के बृहस्पति की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर जाने की जानकारी जूनो के आंकड़ों का निरीक्षण कर रही, जेपीएल की नौचालन शाखा (केलीफोर्निया) के साथ-साथ लॉकहीड मार्टिन जूनो सञ्चालन केंद्र (कोलोरेडो) को मिली। दूरमापी और मार्ग चिन्ह से जुड़ी जानकारी नासा के अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया स्थित 'डीप स्पेस नेटवर्क एंटीना' पर मिली। कक्षा में प्रवेश से पूर्व ईंजन का प्रज्वलन किया जाना था। जूनो के प्रमुख ईंजन का प्रज्वलन भारतीय समयानुसार प्रात: आठ बजकर 48 मिनट पर आरम्भ हुआ, जिससे अंतरिक्ष यान का वेग घटकर 542 मीटर प्रति सेकेंड रह गया और यह यान बृहस्पति की कक्षा में पहुंच गया। 
https://www.youtube.com/watch?v=xtxK5gbJ63U&list=PLD8A212A480412E57&index=45
https://www.youtube.com/watch?v=cdUjjgANT7k&list=PLD8A212A480412E57&index=46
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Thursday, April 28, 2016

ये धरा मेरी गगन मेरा (सभी भारतीयों को बधाई)


ये धरा मेरी गगन मेरा (सभी भारतीयों को बधाई) 
'भारतीय क्षेत्रीय स्थितिक उपग्रह प्रणाली", सातवां और अंतिम उपग्रह IRNSS 1G प्रक्षेपण 12.50 को तैयार। 
अब धरती गगन हुआ "मोदी मगन" है, विरोधी भी कहें, मोदी ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद 
नई दिल्ली। भारत अंतरिक्ष में एक बड़ी छलांग लगाने की तैयारी में है। आज भारत स्वदेशी जीपीएस अर्थात भू -मंडलीय स्थितिक प्रणाली बनाने का लक्ष्य पूरा कर लेगा। अमेरिका आधारित भू -मंडलीय स्थितिक प्रणाली (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) अर्थात "भू -मं.स.प्र." जीपीएस जैसी क्षमता अर्जित करने की दिशा में अंतिम पग बढ़ाते हुए इसरो ने आज अपने सातवें पथ प्रदर्शक उपग्रह IRNSS 1 G को श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण करने की तैयारी कर ली है। 
2016 भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में अविस्मरणीय वर्ष प्रमाणित होने जा रहा है। इसरो का PSLV C-33 रॉकेट अपने 35वें अभियान में IRNSS 1G उपग्रह को यदि आज पृथ्वी की कक्षा में सफलता पूर्वक स्थापित कर देता है, तो भारतीय वैज्ञानिकों को उनके 17 वर्ष के कड़े संघर्ष का फल मिल जाएगा। 
इससे ना केवल भारत के सुदूर वर्ती क्षेत्रों की सही स्थिति पता चल पाएगी बल्कि यातायात भी अतिसरल हो जाएगा। विशेष रूप से लंबी दूरी करने वाले समुद्री जहाजों हेतु ये विशेष सहायक होगा। भारत का 'भारतीय क्षेत्रीय स्थितिक उपग्रह प्रणाली", इंडियन रीजनल नेविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम यानि 'भाक्षेस्थिउप्र",IRNSS, अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानि जीपीएस और रूस के ग्लोनास के समकक्ष है। इस प्रकार की प्रणाली को यूरोपीय संघ और चीन भी वर्ष 2020 तक ही विकसित कर पाएंगे, किन्तु भारत यह सफलता आज ही अर्जित कर सकता है। 
वास्तव में वर्ष 1999 में करगिल युद्ध के मध्य भारत ने पाकिस्तानी सेना की स्थिति जानने के लिए अमेरिका से "भू -मं.स.प्र.जीपीएस सेवा की मांग की थी, किन्तु अमेरिका तब भारत को आंकड़े देने से मना कर दिया था। उसी समय से भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्वदेशी "भू -मं.स.प्र." बनाने के प्रयत्न करने लगे थे। 
भू -मंडलीय स्थितिक प्रणाली "भू -मं.स.प्र.को पूरी तरह से भारतीय तकनीक से विकसित करने हेतु वैज्ञानिकों ने सात उपग्रह को एक नक्षत्र की भांति पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने का निर्णय किया, जिसका सातवां और अंतिम उपग्रह IRNSS 1G अब से कुछ घंटों बाद छोड़ा जाएगा और इसके साथ ही भारतीय वैज्ञानिकों का स्वप्न साकार हो जाएगा। 
इस सफलता के साथ ही भारत का अपना न केवल उपग्रहों का जाल तैयार हो जाएगा, बल्कि भारत के पास भू -मंडलीय स्थितिक प्रणाली "भू -मं.स.प्र.भी स्वदेशी हो जाएगी। वहीं अब इसके लिए भारत को दूसरे देशों पर निर्भर रहना नहीं पड़ेगा। देशी "स्थितिक उपग्रह प्रणाली" चालू हो जाने के बाद से जन सामान्य के जीवन को सुधारने के अतिरिक्त सैन्य गतिविधियों, आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी गतिविधियों को नियंत्रित करने में भी ये अत्यन्त उपयोगी होगा। 
जबकि वैज्ञानिकों का कहना है कि मात्र 4 उपग्रह से भी स्वदेशी स्थितिक प्रणाली "भू -मं.स.प्र.को चलाया जा सकता है किन्तु सातवें उपग्रह के अंतरिक्ष में जाने से पूरी तरह से सही और सटीक स्थिति की जानकारी मिल पाएगी। स्वदेशी प्रणाली के सक्रिय होने के बाद से देशभर में 1500 किलोमीटर की परिधि में 15 से 20 मीटर तक भी सटीक जानकारी मिलने लगेगी। भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वदेशी "स्थितिक उपग्रह प्रणाली" "भू -मं.स.प्र.के लिए प्रथम उपग्रह जुलाई 2013 में छोड़ा था और आज सातवां और अंतिम उपग्रह छोड़कर वो ये प्रमाणित कर देंगे कि विकसित देशों को जो कार्य करने में दशकों लग गए, वो हमने मात्र तीन वर्ष में ही कर दिखाया। https://www.youtube.com/watch?v=8RF4rlzFSCs&list=PL3G9LcooHZf1iJYPHUU2X1jhe9zMmN8j0&index=1 
https://www.youtube.com/watch?v=8RF4rlzFSCs&index=36&list=PLD8A212A480412E57 
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Sunday, September 27, 2015

भारत का एस्ट्रोसैट साथ 6 विदेशी उपग्रह प्रक्षेपण,


ब्रह्मांड की विस्तृत समझ विकसित करने के लक्ष्य पर आधारित अपनी पहली अंतरिक्ष वेधशाला ‘एस्ट्रोसैट’ का भारत ने आज सफलतापूर्वक प्रक्षेपण कर दिया। 
पीएसएलवी-सी30 के द्वारा यहां से प्रक्षेपित किया गया एस्ट्रोसैट अपने साथ छह विदेशी उपग्रह भी ले गया है, जिनमें से 4 अमेरिकी उपग्रह हैं। यह पहली बार है, जब भारत ने अमेरिकी उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं। ये उपग्रह सन फ्रांसिस्को की एक कंपनी के हैं। इन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की व्यवसायिक शाखा 'एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड' के साथ किए गए समझौते के तहत प्रक्षेपित किए गए हैं। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किए गए, इस प्रक्षेपण में इसरो के विश्वसनीय 'पोलर सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल' (पीएसएलवी) की मदद ली गई। अपनी 31वीं उड़ान के तहत, पीएसएलवी ने उड़ान शुरू होने के लगभग 25 मिनट बाद एस्ट्रोसैट और इसके छह सह-यात्रियों (उपग्रहों) को कक्षा में स्थापित कर दिया। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के अध्यक्ष किरण कुमार के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की तालियों और उत्साह के बीच इस उड़ान का शुभारम्भ हुआ।
इस प्रक्षेपण के मध्य केंद्रीय विज्ञान एवं तकनीक राज्य मंत्री वाईएस चौधरी उपस्थित थे। उन्होंने बाद में इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा कि अंतरिक्ष कार्यक्रम ‘‘हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री की सोच एवं योजना और उनके द्वारा रविवार को अमेरिका में कही गई बात के बिल्कुल अनुरूप’’ चल रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा देश संबंधों को उपयोग में ला रहा है और उन्हें सुदृढ़ कर रहा है। यही कारण है कि इसरो यहां से अमेरिकी उपग्रह प्रक्षेपित कर सका।’’ लगभग 1,513 किलोग्राम भार वाले एस्ट्रोसैट को पीएसएलवी-सी30 ने पहले 650 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित कक्षा में प्रवेश करवाया। इसके बाद अन्य छह उपग्रहों को लगभग तीन मिनट में अंतरिक्ष में प्रवेश करवाया गया। पीएसएलवी सी30 में एस्ट्रोसैट के साथ अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के जो उपग्रह ले जाए गए हैं, उनमें इंडोनेशिया का एलएपीएन-ए2 (स्वचालित पहचान तंत्र यानी एआईएस के तहत समुद्री निगरानी के लिए), कनाडा का समुद्री निगरानी नैनो उपग्रह एनएलएस-14 (ईवी9) शामिल हैं। कनाडा का यह उपग्रह आधुनिक एआईएस का उपयोग करता है। 
इसरो ने कहा कि विश्व के सबसे विश्वसनीय प्रक्षेपण वाहनों में से एक, इस रॉकेट ने आज अपने 30वें सफल अभियान को मूर्त किया। यह अपने साथ अमेरिका के सन फ्रांसिस्को की कंपनी 'स्पायर ग्लोबल इंक' के चार नैनो उपग्रह ‘एलईएमयूआर’ भी ले गया है। ये 'रिमोट सेंसिंग' उपग्रह हैं, जिनका प्रमुख उद्देश्य जलयानों पर दृष्टी रखते हुए एआईएस के माध्यम समुद्री गुप्त जानकारी जुटाना है। इसके साथ ही, इसरो द्वारा प्रक्षेपित किए गए वैश्विक ग्राहकों जर्मनी, फ्रांस, जापान, कनाडा, ब्रिटेन समेत कुल 20 देशों के उपग्रहों की संख्या 51 हो गई है। प्रक्षेपण को सफल करार देते हुए इसरो के अध्यक्ष ने उत्साह के साथ कहा कि पीएसएलवी ने वैज्ञानिक समुदाय के लिए नई जानकारियाँ लेकर आने वाले अंतरिक्ष विज्ञान के एक ऐसे अभियान को परिणाम दिया है, जिस पर न केवल देश की बल्कि विश्व की दृष्टी हैं। 'मिशन कंट्रोल सेंटर' में एकत्र हुए लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं पूरे इसरो समुदाय को उनके द्वारा किए गए इस भव्य काम के लिए बधाई देता हूं।’’
पीएसएलवी की निरंतर 30वीं सफलता पर इसरो की प्रशंसा करते हुए चौधरी ने कहा कि यह देश के हर नागरिक के लिए गौरवपूर्ण क्षण है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं इन अभियानों का सहभागी रही इसरो की पूरी टीम (वर्तमान और भूतपूर्व) को बधाई देता हूं। यह 30वीं सफलता है और मुझे विश्वास है कि आप और भी बहुत से सफल प्रक्षेपणों को साकार कर देंगे।’’ 
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक कुन्ही कृष्णन ने कहा कि एस्ट्रोसैट अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में इसरो की ओर से विश्व को दिया गया एक ऐसा उपहार है, जो असीम परिश्रम के साथ जुटाया गया है। उन्होंने कहा कि इस अभियान के साथ इसरो व्यवसायिक प्रक्षेपणों में 50 वर्ष पूरे कर चुका है। उन्होंने कहा, ‘‘हम पीएसएलवी सी29 के एक अन्य व्यवसायिक अभियान की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें सिंगापुर के 6 उपग्रह होंगे। हम सभी को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि पीएसएलवी ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष बाजार में अपनी विशेष उपस्थिति अंकित कराई है।’’ एस्ट्रोसैट अभियान की अवधि 5 वर्ष की है और इसमें 4 "एक्सरे पेलोड, एक अल्ट्रावॉयलेट टेलीस्कोप और एक चार्ज पार्टिकल मॉनिटर" है।
वैज्ञानिक उपग्रह अभियान एस्ट्रोसैट में कई अद्भुत विशेषताएं भी हैं। जैसे कि यह एक ही उपग्रह के द्वारा विभिन्न खगोलीय पिंडों से जुड़ी अलग-अलग लंबाइयों वाली तरंगों के आंकड़े जुटा सकता है। इसरो के अनुसार, एस्ट्रोसैट ब्रह्मांड का अध्ययन विद्युतचुंबकीय स्पेक्ट्रम के प्रकाशीय, पराबैंगनी और उच्च उर्जा वाली एक्सरे के क्षेत्रों में करेगा जबकि अधिकतर अन्य वैज्ञानिक उपग्रह विभिन्न लंबाई की तरंगों के एक संकीर्ण फैलाव (नैरो रेंज) का ही अध्ययन करने में सक्षम होते हैं। 
इस उपग्रह के संचालन की पूरी अवधि के मध्य इसका प्रबंधन बंगलूरू स्थित इसरो टेलीम्रिटी, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क के 'मिशन ऑपरेशन्स कॉम्पलेक्स' स्थित अंतरिक्षयान नियंत्रण केंद्र द्वारा किया जाएगा। एस्ट्रोसैट के वैज्ञानिक उद्देश्य 'न्यूट्रॉन स्टार्स' और 'ब्लैक होल' से युक्त 'बाइनरी स्टार सिस्टम' (दो तारों का समूह) की उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं का अध्ययन करना, न्यूट्रॉन स्टार्स के चुंबकीय क्षेत्र का आकलन और तारों के जन्म क्षेत्रों एवं हमारी आकाशगंगा से परे उपस्थित तारामंडलों की उच्च उर्जा प्रक्रियाओं का अध्ययन करना है।
इस अभियान का उद्देश्य आकाश में उपस्थित नए कम चमकीले एक्सरे स्रोतों की पहचान करना और पराबैंगनी क्षेत्र में ब्रह्मांड का सीमित गहरा क्षेत्रीय सर्वेक्षण करना है। अधिकारियों ने कहा कि इसरो के साथ जो चार भारतीय संस्थान पेलोड विकास में शामिल थे, उनके नाम हैं- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफीजिक्स, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफीजिक्स और रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट।
इसरो श्रीहरिकोटा से भारत की प्रथम समर्पित अंतरिक्ष वेधशाला, एस्ट्रोसैट, https://www.youtube.com/watch?v=8qrE11xFUAo&list=PLD8A212A480412E57&index=29

मिशन उपग्रह एसडीएससी, शार, पीएसएलवी-C30 / श्रीहरिकोटा से एस्ट्रोसैट के प्रक्षेपण https://www.youtube.com/watch?v=ngAg1UyNvbk&list=PLD8A212A480412E57&index=30

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Friday, January 30, 2015

परमाणु-अस्त्र सक्षम 'अग्नि-5' का सफल प्रायोगिक परीक्षण

परमाणु-अस्त्र सक्षम 'अग्नि-5' का सफल परीक्षण 
भारत ने परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम, सतह से सतह पर मार करने वाले, प्रक्षेपास्त्र ‘अग्नि-5’ का ओडिशा तट के समीप व्हीलर द्वीप से, आज सफल प्रायोगिक परीक्षण किया। 
भारत ने स्वदेश में विकसित, परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम, सतह से सतह पर मार करने वाले प्रक्षेपास्त्र अग्नि-5’ का ओडिशा तट के समीप व्हीलर द्वीप से आज सफल प्रायोगिक परीक्षण किया। इसकी मारक क्षमता 5000 किलोमीटर से अधिक है और यह एक टन से अधिक परमाणु आयुध ले जा सकती है। एकीकृत परीक्षण वर्ग 'रेंज' (आईटीआर) के निदेशक एम वी के वी प्रसाद के अनुसार प्रात: आठ बजकर छह मिनट पर आईटीआर में प्रक्षेपण परिसर-4 के सचल (मोबाइल) प्रक्षेपक से ठोस प्रणोदक वाली मिसाइल का प्रक्षेपण किया गया। 
प्रसाद ने बताया कि अग्नि-5 मिसाइल के कैनिस्टर संस्करण का आज सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। मिसाइल का त्रुटिरहित स्वत: प्रक्षेपण हुआ और विभिन्न रडार और नेटवर्क प्रणालियों से सभी आंकड़े (डेटा) मिलने के बाद विस्तृत परिणाम आएंगे। द्वीपीय प्रक्षेपण स्थल से प्रक्षेपण के कुछ ही सेकेंड के भीतर हल्के नारंगी और सफेद रंग के धुएं की परत बनाती हुयी मिसाइल, आकाश में दृष्टी से ओझल हो गयी। विस्तृत जानकारी हेतु 
विडिओ हेतु 
https://www.youtube.com/watch?v=bje3FJaV33c&index=26;list=PLD8A212A480412E57
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