बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: : what's App no 9971065525 DD-Live YDMS दूरदर्पण विविध राष्ट्रीय अन्तरराष्ट्रीय विषयों पर दो दर्जन प्ले-सूची https://www.youtube.com/channel/UCHK9opMlYUfj0yTI6XovOFg एवं CD-Live YDMS चुनावदर्पण https://www.youtube.com/channel/UCjS_ujNAXXQXD4JZXYB-d8Q/channels?disable_polymer=true

Monday, January 17, 2011

शमा पर क्यों जलते हैं परवाने

Antariksha Darpan।the most fascinating blog.

दाग का एक शेर इस विषय पर सटीक बैठता है जो उन्होंने तेरह वर्ष की उम्र में लिखा था :
शमा ने सर पे रखी आग कसम खाने को
बखुदा जलाया नहीं मैंने परवाने को।
तब परवाना जला कैसे? क्या रह्स्य बनाया है इस किशोर शायरने !

परवाना खुद ही अपनी आग में जल गया। कम से कम शमा ने परवाने को नहीं जलाया। मैंने जब यह शेर पढ़ा था तब मैं कालेज में विज्ञान का विद्यार्थी था। मैंने भी सोचा कि परवाने को क्या पड़ी थी शमा पर जल जाने की। प्रकृति परवानों के साथ ऐसा अन्याय नहीं कर सकती। तब यह क्या रहस्य है कि परवाने प्रकृति के नियमों के विरूद्ध शमा पर जल जाते हैं? मैंने सोचा कि परवानों को विशेषकर नर और मादा को रात में ही मिलना होता है तब वे किस तरह एक दूसरे से मिल सकते हैं। जब पतंगे शमा की लव के पास आते हैं तब वे अधिकांशतया उसमें सीधे न जाकर उसकी परिक्रमा अंडाकार में करते हैं कुछ उसी तरह कि जिस तरह पुच्छलतारे सूर्य के आकर्षण से खिचे चले आते हैं किन्तु परिक्रमा अंडाकार में करते हैं। उस समय मुझे नहीं मालूम था कि मादा कीट अपनी विशेष गंध के कण हवा में छोड़ती है। और नर अपनी तीव्र घ्राण शक्ति के बल पर उसे सैकड़ों मीटर दूर से सूंघ लेता है। मैंने सोचा था कि नर और मादा दोनों प्रकाश के तीव्र स्रोत के पास पहुंचते हैं अथार्त शमा उनका मिलन विन्दु होता है। वे वहां अंडाकार में परिक्रमा करते हैं किन्तु कुछ परवाने अपनी व्याकुलता में और मिलन की आशा की तेजी में शमा से टकरा जाते हैं।
सक्रिय वैज्ञानिक और अधिक गहराई में सोचते हैं क्योंकि उन्हें अपनी अवधारणा को प्रयोगों द्वारा सिद्ध भी करना पड़ता है। जां हैनरी फाव्र उन्नीसवीं शती के बहुत प्रसिद्ध कीट विज्ञानी हो गये हैं। मई की एक सुबह उनके घर में अपने कोश में से एक अति सुन्दर पतंगा निकला। उसकी जाति का नाम ही सुन्दर है ‘ग्रेट पीकाक’ ‘बड़ा मयूर’। उन्होंने इसे तुरंत ही जली कक्ष में बन्द कर दिया। उस कक्ष की एक खिड़की खुली रह गई थी। रात के नौ बजे उस कमरे में पतंगे ही पतंगे भर गये यही कोई चालीस पतंगे। वे सब नर पतंगे थे जो उस नवयौवना ग्रेट पीकाक से मिलने आये थे। फाव्र ने प्रश्न किया कि वे पतंगे वहां किस तरह आये उन्हें मादा की उपस्थिति कैसे ज्ञात हुई? रात का अंधेरा था¸ खिड़की भी हारियाली से ढंकी हुई थी और पतंगे पक्षियों की तरह गाना भी नहीं गाते। तब फाव्र ने सोचा कि इतनी सारी गंधों के बीच उनकी गंध भी काम नहीं कर सकती। अतएव अवश्य ही मादा ने कोई बेतार के समान संदेश भेजा होगा। उस समय बेतार द्वारा संदेश भेजना बहुत लोक प्रिय हो रहा था। फाव्र की इस अवधारणा को वैज्ञानिकों ने मान्यता नहीं दी किन्तु बाद में इस अवधारणा का एक अन्य रूप में जन्म होता है। फाव्र रात में पतंगों को देखने के लिये जब मोमबत्ती लेकर गये थे तब सारे पतंगे मादा के जालीदार कक्ष को छोड़कर मतवालों की तरह बत्ती की तरफ भागे थे। फाव्र को पतंगों का यह विचित्र व्यवहार समझ में नहीं आया कि क्योंकर पतंगे मादा को छोड़कर बत्ती के पास जाना चाहेंगे?
पतंगों की कृत्रिम प्रकाश स्रोतों के लिये यह व्याकुलता वैज्ञानिकों की समझ में नहीं आती। पतंगे इस दुनिया में करोड़ों वर्षाें से हैं जब कि कृत्रिम प्रकाश स्रोत कुछ लाख वर्षों से ही हैं। अथार्त पतंगे करोड़ों वर्षों से बिना कृत्रिम प्रकाश के सफलतापूर्वक मिलते आये हैं। 1930 के दशक के अन्त में कीट विशेषज्ञ वान बुडेनब्रॉक ने एक अवधारणा प्रस्तुत की। पतंगे रात में दिकचालन के लिये चंद्रमा का उपयोग करते हैं। वे चन्द्रमा को एक उपयुक्त कोण पर रखकर उड़ते हैं और इस तरह वे सीधी रेखा में उड़ सकते हैं। पतंगे बत्ती को उपयुक्त परिस्थिति में चन्द्रमा समझ बैठते हैं। और उन्होंने आगे कहा कि जब वे ऐसा करेंगे तब वे उस बत्ती की परिक्रमा ही करेंगे न कि सीधी रेखा में उड़ेंगे और उनकी उड़ान कुण्डलीकार हो जायेगी तथा अन्त में वे बत्ती में जायेंगे। पतंगे का बत्ती की चांद मानकर उड़ने में गोलाकार या दीर्घगोलाकार उड़ान भरना तो गणित से सिद्ध किया जा सकता है किन्तु छोटी होती हुई कुण्डली में उड़ना तर्कसंगत नहीं है।
इस दिशा में अंग्रेज कीट विज्ञानी राबिन बेकर ने बहुत चतुर प्रयोग किये। उन्होंने सिद्ध किया कि उजियारी रातों में ‘लार्ज यलो अडरविंग’ ‘विशाल पीत पंख’ जाति के पतंगे चांद की सहायता से सीधी रेखा में उड़ते हैं। उस प्रयोग में उन्होंने चांद के प्रकाश को एक विशाल पर्दे की सहायता से रोका था और देखा था कि तुरंत ही पतंगे भटकने लगे थे। उसी प्रयोग में जब चांद घने वृक्षों के पीछे छिपा तब उन्होंने उपयुक्त स्थान पर एक बल्ब जलाया और तब उन पतंगों ने अपनी दिशा बदल दी थी। पतंगे ऐसा तब ही करते हैं जब कृत्रिम प्रकाश उन्हें चांद की तरह दिखे जो कि बत्ती के आकार और माप तथा पतंगे से दूरी और कोण पर निर्भर करता है।
एक अन्य कीट विज्ञानी एच एस सियाओ ने एक चतुर प्रयोग किया और सिद्ध किया कि अधिकांश पतंगे कृत्रिम स्रोत के चारों तरफ कुण्डलाकार में नहीं उड़ते वरन वे प्रकाश के निकट दो तरफ जाते हैं। पतंगे पकड़ने वाले पतंगे पकड़ने के लिये इस युक्ति का उपयोग करते हैं और दो बड़े थैलों में उन्हें एकत्रित करते हैं। किन्तु इस अवधारणा से यह समझ में नहीं आता कि पतंगे शमा की लव में अपने को क्यों जला देते हैं।
1960
के दशक में कीट विज्ञानी फिलिप कैलाहन ने इस विषय पर एक विचित्र अवधारणा प्रस्तुत की : मादा द्वारा छोड़े गये सुगiन्धत फैरोमोन के कण अवरक्त किरणों का विकिरण करते हैं। इन कणों पर जब रात की निम्न ऊर्जा वाली परावैंगनी किरणें गिरती हैं तब वे फैंरोमोन के कण उसे (पराबैंगनी किरणों को) अवरक्त किरणों में बदलकर पुनर्विकरित करते हैं। अवरक्त किरणों को हम ताप के रूप में अनुभव करते हैं। नर पतंगे इन किरणों के लिये विशेष संवेदनशील होते हैं और वे इन किरणों के सहारे मादा तक पहुंचते हैं। कैलाहन ने यह अवधारणा पतंगों के एंटैनाओं के सूक्ष्म वैज्ञानिक अध्ययन के बाद प्रस्तुत की थी। कैलाहन ने प्रस्तुत किया कि पतंगे शमा या बुनसैन बर्नर या मोमवत्ती पर आकर्षित होते हैं क्योंकि इनकी अवरक्त किरणें मादा द्वारा विकिरित किरणों के समान होती हैं। किन्तु नर पतंगे कोलमैन लैन्टर्न की तरफ आकर्षित नहीं होते। कैलाहन ने प्रयोगों द्वारा दशार्या कि इन लैंटर्न की अवरक्त किरणें बुनसैन बर्नर या मोमवत्ती द्वारा विकिरित किरणों से नितान्त भिÙ होती हैं।
अधिकांश वैज्ञानिक कैलाहन की अवधारणा से सहमत नहीं हैं। अभी तक कैलाहन या अन्य वैज्ञानिक ने प्रयोगों द्वारा नहीं दशार्या है कि मादा द्वारा छोड़े गये फैरोमोन कणों से विशिष्ट अवरक्त किरणें विकरित होती हैं। साथ ही टौरेन्टो विश्वविद्यालय के मार्टिन मस्कोवित्स के तर्क है कि एक तो मादा ऐसे अनेक फैरोमेन कण हवा में छोड़ती है जिसके फलस्वरूप नर पतंगों को एक के स्थान पर सैकड़ों मादाएं दिखेंगी। और दूसरे अवरक्त किरणों से सारा वातावरण भरा पड़ा है अतएव पतंगों को मादा की वह विशेष अवरक्त किरण ढूढ़ने में बहुत कठिनाई होगी। उनका पहला तर्क तो सही है किन्तु दूसरा तर्क सही नहीं है क्योंकि उस विशेष अवरक्त किरण को पकड़ने के लिये प्रकृति एक विशेष फिल्टर बना सकती है जैसे रंगों से भरी दुनिया में कीट विशेष रंग चुन लेते हैं। प्रसिद्ध विज्ञान लेखक जे इन्ग्रैम का कहना है कि कैलाहन की अवधारणा यह तथ्य भी नहीं समझा पाती कि पतंगे अन्त में दिये की लव से हटकर थोड़े दूर क्यों चले जाते हैं।
जहां विज्ञान ने ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति जैसे गूढ़ रहस्यों की खोज में आश्चर्यजनक प्रगति की है वहीं विज्ञान ने इस रहस्य को रहस्य ही रहने दिया है। विज्ञान में खोज करने के लिये अवसर हमेशा होते हैं।
विश्वमोहन तिवारी ़ पूर्व एयर वाइस मार्शल
­143¸ सै ़ 21¸ नौएडा 201301

Saturday, September 11, 2010

आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु

आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु  मैकाले व वामपंथियों से प्रभावित कुशिक्षा से पीड़ित समाज का एक वर्ग, जिसे देश की श्रेष्ठ संस्कृति, आदर्श, मान्यताएं, परम्पराएँ, संस्कारों का ज्ञान नहीं है अथवा स्वीकारने की नहीं नकारने की शिक्षा में पाले होने से असहजता का अनुभव होता है! उनकी हर बात आत्मग्लानी की ही होती है! स्वगौरव की बात को काटना उनकी प्रवृति बन चुकी है! उनका विकास स्वार्थ परक भौतिक विकास है, समाज शक्ति का उसमें कोई स्थान नहीं है! देश की श्रेष्ठ संस्कृति, परम्परा व स्वगौरव की बात उन्हें समझ नहीं आती! 
 किसी सुन्दर चित्र पर कोई गन्दगी या कीचड़ के छींटे पड़ जाएँ तो उस चित्र का क्या दोष? हमारी सभ्यता  "विश्व के मानव ही नहीं चर अचर से,प्रकृति व सृष्टि के कण कण से प्यार " सिखाती है..असभ्यता के प्रदुषण से प्रदूषित हो गई है, शोधित होने के बाद फिर चमकेगी, किन्तु हमारे दुष्ट स्वार्थी नेता उसे और प्रदूषित करने में लगे हैं, देश को बेचा जा रहा है, घोर संकट की घडी है, आत्मग्लानी का भाव हमे इस संकट से उबरने नहीं देगा. मैकाले व वामपंथियों ने इस देश को आत्मग्लानी ही दी है, हम उसका अनुसरण नहीं निराकरण करें, देश सुधार की पहली शर्त यही है, देश भक्ति भी यही है !
भारत जब विश्वगुरु की शक्ति जागृत करेगा, विश्व का कल्याण हो जायेगा !

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Monday, May 17, 2010

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Wednesday, April 14, 2010

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चन्दन तरुषु भुजन्गा

जलेषु कमलानि तत्र च ग्राहाः
गुणघातिनश्च भोगे
खला न च सुखान्य विघ्नानि
Meaning:
We always find snakes and vipers on the trunks of sandal wood trees, we also find crocodiles in the same pond which contains beautiful lotuses. So it is not easy for the good people to lead a happy life without any interference of barriers called sorrows and dangers. So enjoy life as you get it.
Courtesy: रामकृष्ण प्रभा (धूप-छाँव)
विश्व गुरु भारत की पुकार:-
विश्व गुरु भारत विश्व कल्याण हेतु नेतृत्व करने में सक्षम हो ?
इसके लिए विश्व गुरु की सर्वांगीण शक्तियां जागृत हों ! इस निमित्त आवश्यक है अंतरताने के नकारात्मक उपयोग से बड़ते अंधकार का शमन हो, जिस से समाज की सात्विक शक्तियां उभारें तथा विश्व गुरु प्रकट हो! जब मीडिया के सभी क्षेत्रों में अनैतिकता, अपराध, अज्ञानता व भ्रम का अन्धकार फ़ैलाने व उसकी समर्थक / बिकाऊ प्रवृति ने उसे व उससे प्रभावित समूह को अपने ध्येय से भटका दिया है! दूसरी ओर सात्विक शक्तियां लुप्त /सुप्त /बिखरी हुई हैं, जिन्हें प्रकट व एकत्रित कर एक महाशक्ति का उदय हो जाये तो असुरों का मर्दन हो सकता है! यदि जगत जननी, राष्ट्र जननी व माता के सपूत खड़े हो जाएँ, तो यह असंभव भी नहीं है,कठिन भले हो! इसी विश्वास पर, नवरात्रों की प्रेरणा से आइये हम सभी इसे अपना ध्येय बनायें और जुट जाएँ ! तो सत्य की विजय अवश्यम्भावी है! श्रेष्ठ जनों / ब्लाग को उत्तम मंच सुलभ करने का एक प्रयास है जो आपके सहयोग से ही सार्थक /सफल होगा !
अंतरताने का सदुपयोग करते युगदर्पण समूह की ब्लाग श्रृंखला के 25 विविध ब्लाग विशेष सूत्र एवम ध्येय लेकर blogspot.com पर बनाये गए हैं! साथ ही जो श्रेष्ठ ब्लाग चल रहे हैं उन्हें सर्वश्रेष्ठ मंच देने हेतु एक उत्तम संकलक /aggregator है deshkimitti.feedcluster.com ! इनके ध्येयसूत्र / सार व मूलमंत्र से आपको अवगत कराया जा सके; इस निमित्त आपको इनका परिचय देने के क्रम का शुभारंभ (भाग--1) युवादर्पण से किया था,अब (भाग 2,व 3) जीवन मेला व् सत्य दर्पण से परिचय करते हैं: -
2)जीवनमेला:--कहीं रेला कहीं ठेला, संघर्ष और झमेला कभी रेल सा दौड़ता है यह जीवन.कहीं ठेलना पड़ता. रंग कुछ भी हो हंसते या रोते हुए जैसे भी जियो,फिर भी यह जीवन है.सप्तरंगी जीवन के विविध रंग,उतार चढाव, नीतिओं विसंगतियों के साथ दार्शनिकता व यथार्थ जीवन संघर्ष के आनंद का मेला है- जीवन मेला दर्पण.तिलक..(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें,संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611,09911145678,09540007993.
3)सत्यदर्पण:- कलयुग का झूठ सफ़ेद, सत्य काला क्यों हो गया है ?
-गोरे अंग्रेज़ गए काले अंग्रेज़ रह गए! जो उनके राज में न हो सका पूरा,मैकाले के उस अधूरे को 60 वर्ष में पूरा करेंगे उसके साले! विश्व की सर्वश्रेष्ठ उस संस्कृति को नष्ट किया जा रहा है.देश को लूटा जा रहा है.! भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो साधू/अब नारी वेश में फिर आया रावण.दिन के प्रकाश में सबके सामने सफेद झूठ;और अंधकार में लुप्त सच्च की खोज में साक्षात्कार व सामूहिक महाचर्चा से प्रयास - तिलक.(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/ निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/ चैट करें,संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611,9911145678,09540007993.

Sunday, March 28, 2010

विश्व गुरु भारत की पुकार:-

विश्व गुरु भारत विश्व कल्याण हेतु नेतृत्व करने में सक्षम हो ?

इसके लिए विश्व गुरु की सर्वांगीण शक्तियां जागृत हों ! इस निमित्त आवश्यक है अंतरताने के नकारात्मक उपयोग से बड़ते अंधकार का शमन हो, जिस से समाज की सात्विक शक्तियां उभारें तथा विश्व गुरु प्रकट हो! जब मीडिया के सभी क्षेत्रों में अनैतिकता, अपराध, अज्ञानता व भ्रम का अन्धकार फ़ैलाने व उसकी समर्थक / बिकाऊ प्रवृति ने उसे व उससे प्रभावित समूह को अपने ध्येय से भटका दिया है! दूसरी ओर सात्विक शक्तियां लुप्त /सुप्त /बिखरी हुई हैं, जिन्हें प्रकट व एकत्रित कर एक महाशक्ति का उदय हो जाये तो असुरों का मर्दन हो सकता है! यदि जगत जननी, राष्ट्र जननी व माता के सपूत खड़े हो जाएँ, तो यह असंभव भी नहीं है,कठिन भले हो! इसी विश्वास पर, नवरात्रों की प्रेरणा से आइये हम सभी इसे अपना ध्येय बनायें और जुट जाएँ ! तो सत्य की विजय अवश्यम्भावी है! श्रेष्ठ जनों / ब्लाग को उत्तम मंच सुलभ करने का एक प्रयास है जो आपके सहयोग से ही सार्थक /सफल होगा !
अंतरताने का सदुपयोग करते युगदर्पण समूह की ब्लाग श्रृंखला के 25 विविध ब्लाग विशेष सूत्र एवम ध्येय लेकर blogspot.com पर बनाये गए हैं! साथ ही जो श्रेष्ठ ब्लाग चल रहे हैं उन्हें सर्वश्रेष्ठ मंच देने हेतु एक उत्तम संकलक /aggregator है deshkimitti.feedcluster.com ! इनके ध्येयसूत्र / सार व मूलमंत्र से आपको अवगत कराया जा सके इस निमित्त आपको इनका परिचय देने के क्रम का शुभारंभ (भाग--१) युवादर्पण से करते हैं: -
युवा शक्ति का विकास क्रम शैशव, बाल, किशोर व तरुण!
घड़ा कैसा बने?-इसकी एक प्रक्रिया है. कुम्हार मिटटी घोलता, घोटता, घढता व सुखा कर पकाता है! शिशु,युवा,बाल,किशोर व तरुण को संस्कार की प्रक्रिया युवा होते होते पक जाती है! राष्ट्र के आधार स्तम्भ, सधे हाथों, उचित सांचे में ढलने से युवा समाज व राष्ट्र का संबल बनेगा: यही हमारा ध्येय है!
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है!
इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!"
YuvaaDarpan.blogspot.com

Tuesday, March 23, 2010

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कभी विश्व गुरु रहे भारत की धर्म संस्कृति की पताका,विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये!
                       श्री राम जय राम जय जय राम जय श्री राम
        श्री राम  जय राम जय जय राम जय श्री राम जय जय  श्री राम       
अखिल विश्व में फैले समस्त हिन्दुओं सहित संपूर्ण कण कण पर कृपा करनेवाले सर्वव्यापी मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जन्म दिवस राम नवमी की सभी को हार्दिक बधाई -तिलक संपादक युग दर्पण एवम युग दर्पण परिवार

Monday, March 15, 2010

नव संवत 2067 की शुभकामनाएं.

अंग्रेजी का नव वर्ष भले हो मनाया,
उमंग उत्साह चाहे हो जितना दिखाया;
विक्रमी संवत बढ़ चढ़ के मनाएं,
चैत्र के नवरात्रे जब जब आयें;
घर घर सजाएँ उमंग के दीपक जलाएं,
खुशियों से ब्रहमांड तक को महकाएं.
यह केवल एक कैलेंडर नहीं प्रकृति से सम्बन्ध है,
इसी दिन हुआ सृष्टि का आरंभ है.
युगदर्पण परिवार की ओर से अखिल विश्व में फैले हिन्दू समाज सहित,चरअचर सभी के लिए गुडी पडवा, उगादी,
नवसंवत 2067 की शुभकामनाएं.
तिलक संपादक युगदर्पण. .
(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-09911111611,9911145678,9540007993. www.bharatchaupal.blogspot.com/ www.deshkimitti.blogspot.com