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Sunday, September 11, 2016

यह प्रक्षेपण स्वदेशी निम्नतापीय उच्च श्रेणी था और यह पहली परिचालन उड़ान है

श्रीहरिकोटा, 
भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में सफलता के नये शिखर को छूते हुए अत्याधुनिक मौसम उपग्रह इनसैट-3 डीआर को जीएसएलवी-एफ 05 के माध्सम से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया। इस 49.13 मीटर उंचे रॉकेट को यहां के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सायं प्रायः 4:50 बजे प्रक्षेपित किया गया और यह तत्काल नीले गगन की अथाह गहराइयों में विलीन हो गया तथा प्रायः 17 मिनट के बाद इस 2,211 किलोग्राम के इनसैट-3डीआर को भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा में स्थापित कर दिया। इससे पूर्व इस प्रक्षेपण को 40 मिनट के लिए संशोधित किया और इसका प्रक्षेपण सायं चार बजकर 50 मिनट निर्धारित किया गया। इस अंतरिक्ष स्टेशन के दूसरे प्रक्षेपण स्थल से इसे चार बजकर 10 मिनट पर छोड़ा जाना निर्धारित किया गया था। अधिकारियों ने कहा था कि इसके प्रक्षेपण में 40 मिनट की देरी हुयी। निम्नतापीय प्रक्रिया में देरी के कारण प्रक्षेपण चार बजकर 50 मिनट पर निर्धारित किया गया। इनसैट-3डीआर को इस प्रकार से तैयार किया गया है कि इसका जीवन 10वर्ष का होगा। यह पहले मौसम संबंधी मिशन को निरंतरता प्रदान करेगा तथा भविष्य में कई मौसम, खोज और बचाव सेवाओं में क्षमता का विस्तार करेगा। आज का यह मिशन जीएसएलवी की 10वीं उड़ान थी और इसका भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए बड़ा महत्व है क्योंकि यह स्वदेशी निम्नतापीय श्रेणी वाले रॉकेट की पहली परिचालन उड़ान है। पहले, निम्नतापीय स्तर वाले जीएसलवी के प्रक्षेपण विकासात्मक चरण के तहत होते थे। जीएसएलवी-एफ 05 ने स्वदेश में विकसित निम्नतापीय उच्च श्रेणी की सफलता की हैट्रिक भी बनाई है। इसरो के एक अधिकारी ने पीटीआई-भाषा को बताया, जीएसएलवी-एफ05 का आज का प्रक्षेपण अति महत्वपूर्ण है क्योंकि निम्नतापीय उच्च श्रेणी को ले जाने वाली जीएसएलवी की यह पहली परिचालन उड़ान है। पहले के प्रक्षेपण विकासात्मक होते थे। उपयोग किया गया इंजन रूसी था। आज का प्रक्षेपण स्वदेशी निम्नतापीय उच्च श्रेणी था और यह पहली परिचालन उड़ान है। वर्ष 2014 की सफलता के बाद भारत उन प्रमुख देशों के समूह में शामिल हो गया था जिन्होंने स्वदेशी निम्नतापीय इंजन और श्रेणी में सफलता अर्जित की है। आज की सफलता से उत्साहित इसरो प्रमुख एएस किरण कुमार ने वैज्ञानिकों के अपने समूह को एक और सफलता के लिए बधाई दी और कहा कि उपग्रह को कक्षा में स्थापित कर दिया गया है। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (शार) के निदेशक पी कुनिकृष्णन ने कहा कि आज का प्रक्षेपण सुव्यविस्थत था जहां उपग्रह को बहुत सटीक ढंग से भूस्थैतिक कक्षा में स्थापित किया गया। किरण कुमार ने कहा, अद्भुत काम के लिए इसरो के पूरे समूह को बहुत बधाई। इस काम को जारी रखिए। इनसैट-3डीआर के कक्षा में स्थापित होने के बाद कर्नाटक के हासन स्थित मुख्य नियंत्रण कक्ष के वैज्ञानिक कक्षा में इसके आरंभिक अभ्यास को कार्यरूप देंगे और बाद में इसे भू-स्थिर कक्षा में स्थापित करैंगे। इसरो के एक अधिकारी ने कहा कि इस प्रक्रिया में कुछ समय लग सकता है। 
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मौसम उपग्रह इनसैट 3DR को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया है। विशेष बात यह है कि GSLV से पहली बार इस मौसम उपग्रह को छोड़ा गया है। इस उपग्रह से बचाव सेवाओं के साथ-साथ मौसम से संबंधित जानकारियों को सटीकता से जाना जा सकेगा। इसरो ने श्रीहरिकोटा से इस प्रक्षेपण को संभव बनाया। https://www.youtube.com/watch?v=U_x85pn0J9A&list=PLD8A212A480412E57&index=47
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Tuesday, July 5, 2016

नासा का अंतरिक्ष यान जूनो बृहस्पति की कक्षा में प्रविष्ट

नासा का अंतरिक्ष यान जूनो बृहस्पति की कक्षा में प्रविष्ट 

नासा का अंतरिक्ष यान जूनो बृहस्पति की कक्षा में दाखिलतिलक। ह्यूस्टन से प्राप्त समाचारों के अनुसार नासा का सौर-ऊर्जा से संचालित अंतरिक्षयान जूनो पृथ्वी से प्रक्षेपण के पांच वर्ष बाद 80करोड किमी की दूरी पर आज बृहस्पति की कक्षा में प्रवेश कर गया। इस उपलब्धि को ग्रहों के राजा और हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति की उत्पत्ति और विकास को समझने की दिशा में एक बड़ा पग माना जा रहा है। अमेरिका में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उत्सव के वातावरण के बीच ही, जूनो के बृहस्पति की कक्षा में प्रवेश कर जाने की सूचना मिलने पर नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में इस अभियान के प्रसन्न नियंत्रक झूम उठे। 35 मिनट तक ईंजन के प्रज्वलन के बाद यह यान ग्रह के चारों ओर बनी तय कक्षा में प्रवेश कर गया। इस अभियान की लागत 1.1 अरब डॉलर है। जूनो अपने साथ नौ वैज्ञानिक उपकरण लेकर गया है। 
जूनो बृहस्पति की ठोस सतह के अस्तित्व का अध्ययन करेगा, ग्रह के अति शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र को मापेगा, गहरे वातावरण में उपलब्ध जल और अमोनिया की मात्रा नापेगा और इसकी प्रभातों का विश्लेषण करेगा। नासा ने कहा कि यह अभियान बड़े ग्रहों के निर्माण और सौरमंडल के शेष ग्रहों को एक साथ रखने में इनकी भूमिका को समझने में एक बड़ा पग उठाने में हमारी सहायता करेगा। बृहस्पति बड़े ग्रह के रूप में हमारे सामने एक प्रमुख उदाहरण है। वह अन्य नक्षत्रों के आसपास खोजे जा रहे अन्य ग्रह तंत्रों को समझने के लिए भी महत्ती जानकारी उपलब्ध करवा सकता है। जूनो अंतरिक्षयान को पांच अगस्त 2011 को फ्लोरिडा स्थित केप केनेवरेल एयरफोर्स स्टेशन से प्रक्षेपित किया गया था। 
नासा के प्रशासक चार्ली बोल्डेन ने कहा कि जूनो की सहायता से, हम बृहस्पति के व्यापक विकीरण वाले क्षेत्रों से जुड़े रहस्यों को सु लझाएंगे, इससे ग्रह की आंतरिक संरचना को तो समझने में सहयोग के साथ ही साथ बृहस्पति की उत्पत्ति और हमारे पूरे सौरमंडल के विकास को भी समझने में सहायता मिलेगी। जूनो के बृहस्पति की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर जाने की जानकारी जूनो के आंकड़ों का निरीक्षण कर रही, जेपीएल की नौचालन शाखा (केलीफोर्निया) के साथ-साथ लॉकहीड मार्टिन जूनो सञ्चालन केंद्र (कोलोरेडो) को मिली। दूरमापी और मार्ग चिन्ह से जुड़ी जानकारी नासा के अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया स्थित 'डीप स्पेस नेटवर्क एंटीना' पर मिली। कक्षा में प्रवेश से पूर्व ईंजन का प्रज्वलन किया जाना था। जूनो के प्रमुख ईंजन का प्रज्वलन भारतीय समयानुसार प्रात: आठ बजकर 48 मिनट पर आरम्भ हुआ, जिससे अंतरिक्ष यान का वेग घटकर 542 मीटर प्रति सेकेंड रह गया और यह यान बृहस्पति की कक्षा में पहुंच गया। 
https://www.youtube.com/watch?v=xtxK5gbJ63U&list=PLD8A212A480412E57&index=45
https://www.youtube.com/watch?v=cdUjjgANT7k&list=PLD8A212A480412E57&index=46
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Thursday, April 28, 2016

ये धरा मेरी गगन मेरा (सभी भारतीयों को बधाई)


ये धरा मेरी गगन मेरा (सभी भारतीयों को बधाई) 
'भारतीय क्षेत्रीय स्थितिक उपग्रह प्रणाली", सातवां और अंतिम उपग्रह IRNSS 1G प्रक्षेपण 12.50 को तैयार। 
अब धरती गगन हुआ "मोदी मगन" है, विरोधी भी कहें, मोदी ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद 
नई दिल्ली। भारत अंतरिक्ष में एक बड़ी छलांग लगाने की तैयारी में है। आज भारत स्वदेशी जीपीएस अर्थात भू -मंडलीय स्थितिक प्रणाली बनाने का लक्ष्य पूरा कर लेगा। अमेरिका आधारित भू -मंडलीय स्थितिक प्रणाली (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) अर्थात "भू -मं.स.प्र." जीपीएस जैसी क्षमता अर्जित करने की दिशा में अंतिम पग बढ़ाते हुए इसरो ने आज अपने सातवें पथ प्रदर्शक उपग्रह IRNSS 1 G को श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण करने की तैयारी कर ली है। 
2016 भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में अविस्मरणीय वर्ष प्रमाणित होने जा रहा है। इसरो का PSLV C-33 रॉकेट अपने 35वें अभियान में IRNSS 1G उपग्रह को यदि आज पृथ्वी की कक्षा में सफलता पूर्वक स्थापित कर देता है, तो भारतीय वैज्ञानिकों को उनके 17 वर्ष के कड़े संघर्ष का फल मिल जाएगा। 
इससे ना केवल भारत के सुदूर वर्ती क्षेत्रों की सही स्थिति पता चल पाएगी बल्कि यातायात भी अतिसरल हो जाएगा। विशेष रूप से लंबी दूरी करने वाले समुद्री जहाजों हेतु ये विशेष सहायक होगा। भारत का 'भारतीय क्षेत्रीय स्थितिक उपग्रह प्रणाली", इंडियन रीजनल नेविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम यानि 'भाक्षेस्थिउप्र",IRNSS, अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानि जीपीएस और रूस के ग्लोनास के समकक्ष है। इस प्रकार की प्रणाली को यूरोपीय संघ और चीन भी वर्ष 2020 तक ही विकसित कर पाएंगे, किन्तु भारत यह सफलता आज ही अर्जित कर सकता है। 
वास्तव में वर्ष 1999 में करगिल युद्ध के मध्य भारत ने पाकिस्तानी सेना की स्थिति जानने के लिए अमेरिका से "भू -मं.स.प्र.जीपीएस सेवा की मांग की थी, किन्तु अमेरिका तब भारत को आंकड़े देने से मना कर दिया था। उसी समय से भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्वदेशी "भू -मं.स.प्र." बनाने के प्रयत्न करने लगे थे। 
भू -मंडलीय स्थितिक प्रणाली "भू -मं.स.प्र.को पूरी तरह से भारतीय तकनीक से विकसित करने हेतु वैज्ञानिकों ने सात उपग्रह को एक नक्षत्र की भांति पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने का निर्णय किया, जिसका सातवां और अंतिम उपग्रह IRNSS 1G अब से कुछ घंटों बाद छोड़ा जाएगा और इसके साथ ही भारतीय वैज्ञानिकों का स्वप्न साकार हो जाएगा। 
इस सफलता के साथ ही भारत का अपना न केवल उपग्रहों का जाल तैयार हो जाएगा, बल्कि भारत के पास भू -मंडलीय स्थितिक प्रणाली "भू -मं.स.प्र.भी स्वदेशी हो जाएगी। वहीं अब इसके लिए भारत को दूसरे देशों पर निर्भर रहना नहीं पड़ेगा। देशी "स्थितिक उपग्रह प्रणाली" चालू हो जाने के बाद से जन सामान्य के जीवन को सुधारने के अतिरिक्त सैन्य गतिविधियों, आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी गतिविधियों को नियंत्रित करने में भी ये अत्यन्त उपयोगी होगा। 
जबकि वैज्ञानिकों का कहना है कि मात्र 4 उपग्रह से भी स्वदेशी स्थितिक प्रणाली "भू -मं.स.प्र.को चलाया जा सकता है किन्तु सातवें उपग्रह के अंतरिक्ष में जाने से पूरी तरह से सही और सटीक स्थिति की जानकारी मिल पाएगी। स्वदेशी प्रणाली के सक्रिय होने के बाद से देशभर में 1500 किलोमीटर की परिधि में 15 से 20 मीटर तक भी सटीक जानकारी मिलने लगेगी। भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वदेशी "स्थितिक उपग्रह प्रणाली" "भू -मं.स.प्र.के लिए प्रथम उपग्रह जुलाई 2013 में छोड़ा था और आज सातवां और अंतिम उपग्रह छोड़कर वो ये प्रमाणित कर देंगे कि विकसित देशों को जो कार्य करने में दशकों लग गए, वो हमने मात्र तीन वर्ष में ही कर दिखाया। https://www.youtube.com/watch?v=8RF4rlzFSCs&list=PL3G9LcooHZf1iJYPHUU2X1jhe9zMmN8j0&index=1 
https://www.youtube.com/watch?v=8RF4rlzFSCs&index=36&list=PLD8A212A480412E57 
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Sunday, September 27, 2015

भारत का एस्ट्रोसैट साथ 6 विदेशी उपग्रह प्रक्षेपण,


ब्रह्मांड की विस्तृत समझ विकसित करने के लक्ष्य पर आधारित अपनी पहली अंतरिक्ष वेधशाला ‘एस्ट्रोसैट’ का भारत ने आज सफलतापूर्वक प्रक्षेपण कर दिया। 
पीएसएलवी-सी30 के द्वारा यहां से प्रक्षेपित किया गया एस्ट्रोसैट अपने साथ छह विदेशी उपग्रह भी ले गया है, जिनमें से 4 अमेरिकी उपग्रह हैं। यह पहली बार है, जब भारत ने अमेरिकी उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं। ये उपग्रह सन फ्रांसिस्को की एक कंपनी के हैं। इन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की व्यवसायिक शाखा 'एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड' के साथ किए गए समझौते के तहत प्रक्षेपित किए गए हैं। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किए गए, इस प्रक्षेपण में इसरो के विश्वसनीय 'पोलर सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल' (पीएसएलवी) की मदद ली गई। अपनी 31वीं उड़ान के तहत, पीएसएलवी ने उड़ान शुरू होने के लगभग 25 मिनट बाद एस्ट्रोसैट और इसके छह सह-यात्रियों (उपग्रहों) को कक्षा में स्थापित कर दिया। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के अध्यक्ष किरण कुमार के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की तालियों और उत्साह के बीच इस उड़ान का शुभारम्भ हुआ।
इस प्रक्षेपण के मध्य केंद्रीय विज्ञान एवं तकनीक राज्य मंत्री वाईएस चौधरी उपस्थित थे। उन्होंने बाद में इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा कि अंतरिक्ष कार्यक्रम ‘‘हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री की सोच एवं योजना और उनके द्वारा रविवार को अमेरिका में कही गई बात के बिल्कुल अनुरूप’’ चल रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा देश संबंधों को उपयोग में ला रहा है और उन्हें सुदृढ़ कर रहा है। यही कारण है कि इसरो यहां से अमेरिकी उपग्रह प्रक्षेपित कर सका।’’ लगभग 1,513 किलोग्राम भार वाले एस्ट्रोसैट को पीएसएलवी-सी30 ने पहले 650 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित कक्षा में प्रवेश करवाया। इसके बाद अन्य छह उपग्रहों को लगभग तीन मिनट में अंतरिक्ष में प्रवेश करवाया गया। पीएसएलवी सी30 में एस्ट्रोसैट के साथ अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के जो उपग्रह ले जाए गए हैं, उनमें इंडोनेशिया का एलएपीएन-ए2 (स्वचालित पहचान तंत्र यानी एआईएस के तहत समुद्री निगरानी के लिए), कनाडा का समुद्री निगरानी नैनो उपग्रह एनएलएस-14 (ईवी9) शामिल हैं। कनाडा का यह उपग्रह आधुनिक एआईएस का उपयोग करता है। 
इसरो ने कहा कि विश्व के सबसे विश्वसनीय प्रक्षेपण वाहनों में से एक, इस रॉकेट ने आज अपने 30वें सफल अभियान को मूर्त किया। यह अपने साथ अमेरिका के सन फ्रांसिस्को की कंपनी 'स्पायर ग्लोबल इंक' के चार नैनो उपग्रह ‘एलईएमयूआर’ भी ले गया है। ये 'रिमोट सेंसिंग' उपग्रह हैं, जिनका प्रमुख उद्देश्य जलयानों पर दृष्टी रखते हुए एआईएस के माध्यम समुद्री गुप्त जानकारी जुटाना है। इसके साथ ही, इसरो द्वारा प्रक्षेपित किए गए वैश्विक ग्राहकों जर्मनी, फ्रांस, जापान, कनाडा, ब्रिटेन समेत कुल 20 देशों के उपग्रहों की संख्या 51 हो गई है। प्रक्षेपण को सफल करार देते हुए इसरो के अध्यक्ष ने उत्साह के साथ कहा कि पीएसएलवी ने वैज्ञानिक समुदाय के लिए नई जानकारियाँ लेकर आने वाले अंतरिक्ष विज्ञान के एक ऐसे अभियान को परिणाम दिया है, जिस पर न केवल देश की बल्कि विश्व की दृष्टी हैं। 'मिशन कंट्रोल सेंटर' में एकत्र हुए लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं पूरे इसरो समुदाय को उनके द्वारा किए गए इस भव्य काम के लिए बधाई देता हूं।’’
पीएसएलवी की निरंतर 30वीं सफलता पर इसरो की प्रशंसा करते हुए चौधरी ने कहा कि यह देश के हर नागरिक के लिए गौरवपूर्ण क्षण है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं इन अभियानों का सहभागी रही इसरो की पूरी टीम (वर्तमान और भूतपूर्व) को बधाई देता हूं। यह 30वीं सफलता है और मुझे विश्वास है कि आप और भी बहुत से सफल प्रक्षेपणों को साकार कर देंगे।’’ 
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक कुन्ही कृष्णन ने कहा कि एस्ट्रोसैट अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में इसरो की ओर से विश्व को दिया गया एक ऐसा उपहार है, जो असीम परिश्रम के साथ जुटाया गया है। उन्होंने कहा कि इस अभियान के साथ इसरो व्यवसायिक प्रक्षेपणों में 50 वर्ष पूरे कर चुका है। उन्होंने कहा, ‘‘हम पीएसएलवी सी29 के एक अन्य व्यवसायिक अभियान की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें सिंगापुर के 6 उपग्रह होंगे। हम सभी को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि पीएसएलवी ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष बाजार में अपनी विशेष उपस्थिति अंकित कराई है।’’ एस्ट्रोसैट अभियान की अवधि 5 वर्ष की है और इसमें 4 "एक्सरे पेलोड, एक अल्ट्रावॉयलेट टेलीस्कोप और एक चार्ज पार्टिकल मॉनिटर" है।
वैज्ञानिक उपग्रह अभियान एस्ट्रोसैट में कई अद्भुत विशेषताएं भी हैं। जैसे कि यह एक ही उपग्रह के द्वारा विभिन्न खगोलीय पिंडों से जुड़ी अलग-अलग लंबाइयों वाली तरंगों के आंकड़े जुटा सकता है। इसरो के अनुसार, एस्ट्रोसैट ब्रह्मांड का अध्ययन विद्युतचुंबकीय स्पेक्ट्रम के प्रकाशीय, पराबैंगनी और उच्च उर्जा वाली एक्सरे के क्षेत्रों में करेगा जबकि अधिकतर अन्य वैज्ञानिक उपग्रह विभिन्न लंबाई की तरंगों के एक संकीर्ण फैलाव (नैरो रेंज) का ही अध्ययन करने में सक्षम होते हैं। 
इस उपग्रह के संचालन की पूरी अवधि के मध्य इसका प्रबंधन बंगलूरू स्थित इसरो टेलीम्रिटी, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क के 'मिशन ऑपरेशन्स कॉम्पलेक्स' स्थित अंतरिक्षयान नियंत्रण केंद्र द्वारा किया जाएगा। एस्ट्रोसैट के वैज्ञानिक उद्देश्य 'न्यूट्रॉन स्टार्स' और 'ब्लैक होल' से युक्त 'बाइनरी स्टार सिस्टम' (दो तारों का समूह) की उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं का अध्ययन करना, न्यूट्रॉन स्टार्स के चुंबकीय क्षेत्र का आकलन और तारों के जन्म क्षेत्रों एवं हमारी आकाशगंगा से परे उपस्थित तारामंडलों की उच्च उर्जा प्रक्रियाओं का अध्ययन करना है।
इस अभियान का उद्देश्य आकाश में उपस्थित नए कम चमकीले एक्सरे स्रोतों की पहचान करना और पराबैंगनी क्षेत्र में ब्रह्मांड का सीमित गहरा क्षेत्रीय सर्वेक्षण करना है। अधिकारियों ने कहा कि इसरो के साथ जो चार भारतीय संस्थान पेलोड विकास में शामिल थे, उनके नाम हैं- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफीजिक्स, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफीजिक्स और रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट।
इसरो श्रीहरिकोटा से भारत की प्रथम समर्पित अंतरिक्ष वेधशाला, एस्ट्रोसैट, https://www.youtube.com/watch?v=8qrE11xFUAo&list=PLD8A212A480412E57&index=29

मिशन उपग्रह एसडीएससी, शार, पीएसएलवी-C30 / श्रीहरिकोटा से एस्ट्रोसैट के प्रक्षेपण https://www.youtube.com/watch?v=ngAg1UyNvbk&list=PLD8A212A480412E57&index=30

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Friday, January 30, 2015

परमाणु-अस्त्र सक्षम 'अग्नि-5' का सफल प्रायोगिक परीक्षण

परमाणु-अस्त्र सक्षम 'अग्नि-5' का सफल परीक्षण 
भारत ने परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम, सतह से सतह पर मार करने वाले, प्रक्षेपास्त्र ‘अग्नि-5’ का ओडिशा तट के समीप व्हीलर द्वीप से, आज सफल प्रायोगिक परीक्षण किया। 
भारत ने स्वदेश में विकसित, परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम, सतह से सतह पर मार करने वाले प्रक्षेपास्त्र अग्नि-5’ का ओडिशा तट के समीप व्हीलर द्वीप से आज सफल प्रायोगिक परीक्षण किया। इसकी मारक क्षमता 5000 किलोमीटर से अधिक है और यह एक टन से अधिक परमाणु आयुध ले जा सकती है। एकीकृत परीक्षण वर्ग 'रेंज' (आईटीआर) के निदेशक एम वी के वी प्रसाद के अनुसार प्रात: आठ बजकर छह मिनट पर आईटीआर में प्रक्षेपण परिसर-4 के सचल (मोबाइल) प्रक्षेपक से ठोस प्रणोदक वाली मिसाइल का प्रक्षेपण किया गया। 
प्रसाद ने बताया कि अग्नि-5 मिसाइल के कैनिस्टर संस्करण का आज सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। मिसाइल का त्रुटिरहित स्वत: प्रक्षेपण हुआ और विभिन्न रडार और नेटवर्क प्रणालियों से सभी आंकड़े (डेटा) मिलने के बाद विस्तृत परिणाम आएंगे। द्वीपीय प्रक्षेपण स्थल से प्रक्षेपण के कुछ ही सेकेंड के भीतर हल्के नारंगी और सफेद रंग के धुएं की परत बनाती हुयी मिसाइल, आकाश में दृष्टी से ओझल हो गयी। विस्तृत जानकारी हेतु 
विडिओ हेतु 
https://www.youtube.com/watch?v=bje3FJaV33c&index=26;list=PLD8A212A480412E57
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Wednesday, December 31, 2014

"अंग्रेजी का नव वर्ष, भले ही मनाएं;

"अंग्रेजी का नव वर्ष, भले ही मनाएं; 
নববর্ষ, નવા વર્ષની, New Year, ಹೊಸ ವರ್ಷದ, പുതുവർഷം, नवीन वर्ष, 
புத்தாண்டு, న్యూ ఇయర్, ਨਵਾਂ ਸਾਲ, نئے سال
(गुलामी के संकेत/हस्ताक्षर, जो मनाना चाहें)
उमंग उत्साह, चाहे जितना दिखाएँ; 
चैत्र के नव रात्रे, जब जब भी आयें
घर घर सजाएँ, उमंग के दीपक जलाएं; 
आनंद से, ब्रह्माण्ड तक को महकाएं; 
विश्व में, भारत का गौरव बढाएं " 
भारत भ्रष्टाचार व आतंकवाद से मुक्त हो, 
हम अपने आदर्श व संस्कृति को पुनर्प्रतिष्ठित कर सकें ! 
इन्ही शुभकामनाओं के साथ, 
जनवरी 2015, ही क्यों ? वर्ष के 365 दिन ही मंगलमय हों, 
भवदीय... तिलक 
संपादक युगदर्पण राष्ट्रीय साप्ताहिक हिंदी समाचार-पत्र. YDMS 07531949051.

Bangla... 

 অংগ্রেজী কা নব বর্ষ, ভলে হী মনাএং 

 "অংগ্রেজী কা নব বর্ষ, ভলে হী মনাএং; (দাসত্ব সংকেত / সাইন, যা তুষ্ট হতে পারে) উমংগ উত্সাহ, চাহে জিতনা দিখাএঁ; চৈত্র কে নব রাত্রে, জব জব ভী আযেং; ঘর ঘর সজাএঁ, উমংগ কে দীপক জলাএং; আনংদ সে, ব্রহ্মাণ্ড তক কো মহকাএং; বিশ্ব মেং, ভারত কা গৌরব বঢাএং "জানুয়ারি 1, 2015,হী কেন ? বর্ষ কে 365 দিন হী মংগলময হোং, ভারত ভ্রষ্টাচার ব আতংকবাদ সে মুক্ত হো, হম অপনে আদর্শ ব সংস্কৃতি কো পুনর্প্রতিষ্ঠিত কর সকেং ! ইন্হী শুভকামনাওং কে সাথ, ভবদীয.. তিলক সংপাদক যুগদর্পণ রাষ্ট্রীয সাপ্তাহিক হিংদী সমাচার-পত্র. YDMS 09911111611. 
Tamil... "அங்க்றேழி கா நவ்வர்ஷ், பாளே ஹாய் மணாஎன்"
 "அங்க்றேழி கா நவ்வர்ஷ், பாளே ஹாய் மணாஎன்; (மயக்க இது அடிமைத்தன சமிக்ஞை / அடையாளம்,) உமங்க் உட்சாஹ், சாஹெ சித்னா டிக்ஹாஎன்; செட்ர் கே நவ்ராற்றே, ஜப் ஜப் பீ ஆயேன்; கர் கர் சஜாயேன், உமாங் கே தீபக் ஜலாயேன்; ஆனந்த சே, பிராமாந்து தக் கோ மஹ்காயென்; விஷ்வ மீ, பாரத் கா கௌரவ் படாஎன். "ஜனவரி 1, 2015, ஏன்ஒரே ஒரு? வ வர்ஷ் கே 365 டின் ஹாய் மங்கலமாய் ஹோண், பாரத் பிராஷ்டாச்சர் வ ஆடன்க்வாத் சே முகத் ஹோ, ஹம அப்னே ஆதர்ஷ் வ சன்ச்க்ருடி கோ புன்ர்ப்ரடிஷ்திட் கற் சகேன் ! இன்ஹி சுபா காமனாஒன் கே சாத், பாவ்டிய.. திலக் சம்பாடக் யுக டர்பன் ராஷ்ட்ரிய சப்டாஹிக் ஹிந்தி சமாச்சார்-பற்ற. YDMS 09911111611.
 Eng.  "One may celebrate even English New Year, (Slavery signal / sign, you may coax) with exaltation and excitement; Chaitra Nav Ratre whenever it comes; decorate house, enlighten with lamps of exaltation; enjoy, even enrich the universe with Happiness; Increase the India's pride in the world, Why January 1, 2013, alone ? All the 365 days of the year are Auspicious, May India be free of corruption and terrorism, we can ReEstablish Ideals, values and culture ! with these good wishes, Sincerely .. Tilak editor YugDarpan Hindi national weekly newspaper. YDMS 09,911,111,611.
 Odiya ..not getting ? 
 "Angrejee kaa nav-varsh, bhale hi manaayen; (Gulaami ke sanket /  , jo  manana  chahen ? umang utsaah, chaahe jitnaa dikhaayen; chetr ke nav-raatre, jab jab bhi aayen; ghar ghar sajaayen, umang ke deepak jalaayen; Aanand se, brahmaand tak ko mahkaayen; Vishva me, Bhaarat kaa gaurav badaayen." matr 1 Jan 2015, hi kyon ? varsh ke 365 din hi mangalmay hon, Bhaarat bhrashtaachar v aatankvaad se mukt ho, ham apne aadarsh v sanskruti ko punrpratishthit kar saken ! inhi shubhakaamanaaon ke saath, bhavdiya.. Tilak Sampaadak Yug Darpan Raashtriya Saptaahik Hindi Samaachar-Patra. YDMS 09911111611.
 Telugu "అంగ్రేజీ కా నవ్వర్ష్, భలే హాయ్ మనాఎన్; 
"అంగ్రేజీ కా నవ్వర్ష్, భలే హాయ్ మనాఎన్; (పొగడ్తలు ఇది బానిసత్వం సిగ్నల్ / గుర్తు) ఉమంగ్ ఉత్సః, చాహే జితనా దిఖాఎన్; చేతర్ కె నవరాత్రు, జబ జబ భి ఆయెన్; ఘర్ ఘర్ సజాఎన్, ఉమంగ్ కె దీపక్ జలాఎన్; ఆనంద్ సే, బ్రహ్మాండ్ తక కో మహ్కాఎన్; విశ్వ మే, భారత్ కా గౌరవ్ బదాఎన్. " జనవరి 1, 2015, ఎందుకు మాత్రమే  వ వర్ష కె 365 దిన్ హాయ్ మంగల్మి హాన్, భారత్ భ్రష్టాచార్ వ ఆటన్క్వాద్ సే ముక్త  హో, హం అపనే ఆదర్శ్ వ సంస్కృతి కో పున్ర్ప్రతిశ్తిట్ కర్ సకేన్ ! ఇంహి శుభాకామనావున్ కె సాత్, భవదీయ.. తిలక్ సంపాదక్ యుగ దర్పన్ రాష్ట్రీయ సప్తాహిక్ హిందీ సమాచార్-పాత్ర. YDMS 09911111611.
 Gujrati અંગ્રેઝી કા નવવર્ષ, ભલે હી માંનાયેન; 
"અંગ્રેઝી કા નવવર્ષ, ભલે હી માંનાયેન; (સ્લેવરી સિગ્નલ / સાઇન છે, કે જે મનાવવું શકે છે) ઉમંગ ઉત્સાહ, ચાહે જીતના દીખાયેન; ચેત્ર કે નવરાત્રે, જબ જબ ભી આયેન; ઘર ઘર સજાયેન, ઉમંગ કે દિપક જલાયેન; આનંદ સે, બ્રહ્માંડ તક કો મહ્કાયેન; વિશ્વ મેં, ભારત કા ગૌરવ  બદાયેન. "માત્ર જાન્યુઆરી 1, 2015, શા માટે? વર્ષ કે 365 દિન હી મંગલમય હોં, ભારત ભ્રષ્ટાચાર વ આતંકવાદ સે મુક્ત હો, હમ અપને આદર્શ વ સંસ્કૃતિ કો પુન્ર્પ્રતીશ્થીત કર સકેં ! ઇન્હી શુભકામનાઓન કે સાથ, ભવદીય.. તિલક સંપાદક યુગ દર્પણ રાષ્ટ્રીય સાપ્તાહિક હિન્દી સમાચાર -પત્ર.YDMS 09911111611.
 kannad "ಆಂಗ್ರೆಶಿ ಕಾ ನವ -ವರ್ಷ, ಭಲೇ ಹಿ ಮನಾಯೇನ್; 
"ಆಂಗ್ರೆಶಿ ಕಾ ನವ -ವರ್ಷ, ಭಲೇ ಹಿ ಮನಾಯೇನ್; (ಏಕಾಕ್ಷ ಇದು ಗುಲಾಮಗಿರಿ ಸಂಕೇತ / ಸೈನ್) ಉಮಂಗ್ ಉತ್ಸಃ, ಚಾಹೆ ಜಿತನಾ ದಿಖಾಯೇನ್; ಚೆತ್ರ್ ಕೆ ನವ್ರಾತ್ರೆ, ಜಬ್ ಜಬ್ ಭಿ ಆಯೇನ್; ಘರ್ ಘರ್ ಸಜಾಯೇನ್, ಉಮಂಗ್ ಕೆ ದೀಪಕ್ ಜಲಾಯೇನ್; ಆನಂದ್ ಸೆ, ಬ್ರಹ್ಮಾಂದ್ ತಕ ಕೊ ಮಹ್ಕಾಯೇನ್; ವಿಶ್ವ ಮೇ, ಭಾರತ ಕಾ ಗೌರವ್ ಬದಾಯೇನ್. "ಜನವರಿ 1, 2015, ಏಕೆ ಮಾತ್ರ ವ ವರ್ಷ ಕೆ 365 ದೀನ್ ಹಿ ಮಂಗಲ್ಮಿ ಹೊಂ, ಭಾರತ ಭ್ರಷ್ತಾಚರ್ ವ ಆತಂಕ್ವಾದ್ ಸೆ ಮುಕ್ತ ಹೊ, ಹಮ್ ಅಪನೇ ಆದರ್ಶ್ ವ ಸಂಸ್ಕೃತಿ ಕೊ ಪುನ್ರ್ಪ್ರತಿಷ್ಟ್ಹತ್  ಕರ್  ಸಕೆನ್ ! ಇನ್ಹಿ ಶುಭಕಾಮನಾಒನ್ ಕೆ ಸಾಥ್, ಭಾವ್ದಿಯ.. ತಿಲಕ್ ಸಂಪಾಡಕ್ ಯುಗ ದರ್ಪಣ್ ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಸಪ್ತಾಹಿಕ್ ಹಿಂದಿ ಸಮಾಚಾರ್ -ಪತ್ರ . YDMS 09911111611.
 Gumu. "ਅੰਗ੍ਰੇਜੀ ਦਾ ਨਵਾਂ ਵਰਸ਼ ਭਲੇ ਹੀ ਮਨਾਓ
"ਅੰਗ੍ਰੇਜੀ ਦਾ ਨਵਾਂ ਵਰਸ਼ ਭਲੇ ਹੀ ਮਨਾਓ, ਗੁਲਾਮੀ ਦਾ ਪ੍ਰਤੀਕ /ਸੰਕੇਤ, ਉਮੰਗ ਉਤਸਾਹ ਚਾਹੇ ਜਿਤਨਾ ਦਿਖਾਓ; ਚੇਤਰ ਦੇ ਨਵਰਾਤਰੇ ਜਦ ਜਦ ਵੀ ਆਉਣ; ਘਰ ਘਰ ਸਜਾਓ, ਉਮੰਗ ਦੇ ਦੀਪਕ ਜਲਾਓ; ਆਨਾਨਾਦ ਨਾ ਬ੍ਰਹ੍ਮਾੰਡ ਨੂ ਮਹ੍ਕਾਓ, ਵਿਸ਼ਵ ਵਿਚ, ਭਾਰਤ ਦਾ ਗ਼ੋਰਾਵ ਵਧਾਓ. "1 ਜਨ. 2015 ਹ ਕਯੋਂ ? ਵ ਵਰ੍ਸ਼ ਦੇ 365 ਦਿਨ ਹੀ ਮੰਗਲ ਮਯ ਹੋਣ, ਭ੍ਰਸ਼੍ਟਾਚਾਰ ਤੇ ਆਤੰਕ ਵਾਦ ਤੋਂ ਭਾਰਤ ਮੁਕਤ ਹੋਵੇ, ਅਸਾਂ ਆਪਣੇ ਆਦਰ੍ਸ਼ ਤੇ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਿ ਨੂੰ ਫੇਰ ਸ੍ਥਾਪਿਤ ਕਰ ਸਕਿਏ ! ਇਨਹਾਂ ਸ਼ੁਭ ਕਾਮਨਾਵਾਂ ਦੇ ਨਾਲ, ਆਪਦਾ.. ਤਿਲਕ -ਸੰਪਾਦਕ ਯੁਗ ਦਰ੍ਪਣ, ਰਾਸ਼੍ਟ੍ਰੀਯ ਸਾਪ੍ਤਾਹਿਕ ਸਮਾਚਾਰ ਪਤ੍ਰ. YDMS 09911111611.
 malm "അന്ഗ്രെജീ  കാ  നവ വര്‍ഷ, ഭലേ ഹി മനായേന്‍; 
"അന്ഗ്രെജീ  കാ  നവ വര്‍ഷ, ഭലേ ഹി മനായേന്‍; (ഗുലാമി ക പ്രറ്റീക്/സന്കെറ്റ്, ജോ മനന ചാഹെ) ഉമന്ഗ് ഉറ്റ്സാഹ്, ചാഹെ ജിതനാ ദിഖയെന്‍; ചേട്ര്‍ കെ നവ്രട്രെ, ജബ് ജബ് ഭീ ആയെന്‍; ഘര്‍ ഘര്‍ സജായെന്‍, ഉമന്ഗ് കെ ദീപക് ജലായെന്‍; ആനന്ദ് സെ, ബ്രഹ്മാന്ദ് ടാക് കോ മഹാകായെന്‍; വിശ്വ് മി, ഭാരത കാ ഗൌരവ് ബടായെന്‍. "ഐ ജന. 2015 ഹി ക്യോന്‍? വ വര്‍ഷ കെ 365 ദിന്‍ ഹി മങ്ങല്‍മി ഹോണ്‍, ഭാരത ഭ്രാഷ്ടാചാര്‍ വ ആടങ്ക്വാദ് സെ മുക്റ്റ് ഹോ, ഹാം അപ്നെ ആദര്‍ശ് വ സന്സ്ക്രുടി കോ പുന്ര്പ്രടിശ്തിറ്റ് കാര്‍ സകെന്‍ ! ഇന്ഹി ശുഭ കാമ്നാഒന്‌ കെ സാത്, ഭവദീയ.. തിളക് സംപാടാക് യുഗ്ദാര്പന്‍ രാഷ്ട്രീയ ഹിന്ദി സമാചാര്‍ പടര്‍. YDMS 09911111611. 

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Wednesday, December 17, 2014

भारतीय मानव अंतरिक्ष अभियान सफल

भारतीय मानव अंतरिक्ष अभियान सफल 
युदस :अंतरिक्ष में मानवीय पदार्पण के भारतीय लक्ष्य की ओर नन्हें पग बढ़ाते हुए, आज इसरो ने अपने सबसे भारी प्रक्षेपण वाहन जीएसएलवी एमके-3 के प्रक्षेपण के साथ ही चालक दल मॉड्यूल को वातावरण में पुन: प्रवेश कराने का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया। आज प्रात: नौ बजकर 30 मिनट पर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र की दूसरी प्रक्षेपण पट्टी (लॉन्च पैड) से इसके प्रक्षेपण के ठीक 5.4 मिनट बाद मॉड्यूल 126 किलोमीटर की ऊंचाई पर जाकर रॉकेट से अलग हो गया और फिर समुद्र तल से लगभग 80 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी के वातावरण में पुन: प्रवेश कर गया। 
Ratnakar Raj's photo.यह बहुत तीव्र गति से नीचे की ओर उतरा और फिर इंदिरा प्वाइंट से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर बंगाल की खाड़ी में उतर गया। इंदिरा प्वाइंट अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह का दक्षिणतम बिंदू है। एलवीएम3-एक्स की इस उड़ान के तहत इसमें सक्रिय एस 200 और एल 110 के प्रणोदक चरण हैं।इसके अतिरिक्त एक प्रतिरूपी ईंजन के साथ एक निष्क्रिय सी25 चरण है, जिसमें सीएआरई (वायुमंडलीय पुनः प्रवेश प्रयोगउपकरण चालक दल) इसके नीतभार के रूप में साथ गया है। 
इस प्रक्षेपण को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।  


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने अब तक के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-एमके3 को प्रक्षेपित किया है. इसका तात्पर्य है -
Ratnakar Raj's photo.1. अभी तक भारत दो टन के उपग्रह को अंतरिक्ष में भेज सकता था, किन्तु इस रॉकेट के प्रक्षेपण से आने वाले समय में चार टन के सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजा जा सकेगा. और सबसे बड़ी बात ये कि भारी उपग्रह के प्रक्षेपण करने के लिए अब भारत को दूसरे देशों पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। अर्थात आने वाले समय में भारत आत्म-निर्भर होगा, जिससे हमारा व्यय तो कम होगा ही साथ ही भारतीय वैज्ञानिकों का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।
2. इस रॉकेट को 160-170 करोड़ रुपए की लागत से बनाया गया है, जो विश्व की अन्य अंतरिक्ष एजेंसयों के अनुपात में व्यय केवल आधा ही है।  विश्व में होड़ सी लगी रहती है कि किस प्रकार से सस्ता और विश्वसनीय अंतरिक्ष मिशन को पूरा किया जाए।  भारत ने विश्व को अब ये 
सफलता पूर्वक करके दिखा दिया है। 
3. अंतरिक्ष में अपना दबदबा बनाने के लिए जैसे-जैसे भारत एक के बाद एक सफल छलांग लगा रहा है, 
अंतरिक्ष में भारत की साख बन रही है उसे देख कर लगता है कि एशिया में भारत जो चीन से सदा पीछे रहा है, किन्तु मंगलयान के बाद चीन से आगे बढ़ गया है। 
4. अब भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी दूसरे देशों के उपग्रह भेजने में उनकी सहायता कर सकेगी।  मंगलयान से लेकर चंद्रयान और जीएसएलवी-एमके 3 के प्रक्षेपण की सफलता के बाद अब दूसरे देश अपने व्यवसायिक उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए भारतीय अंतरिक्ष ऐजेंसी पर निर्भर करेंगें।
उसके दो कारण हैं – एक तो ये कि भारत के पास सस्ती तकनीक उपलब्ध है और दूसरा ये कि हमारी गुणवत्ता अब वैश्विक स्तर पर प्रमाणित हो चुकी है. अर्थात अरबों डॉलर के प्रक्षेपण व्यवसाय में भारत अपने लिए एक विश्वसनीय स्थान बना पाएगा।
5. इस सफलता के बाद आने वाले 10-15 वर्षों में भारत अपने अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में भेज सकेगा। 
आज की पीढ़ी में जो बच्चे अंतरिक्ष यात्री बनने की चाह रखते हैं, उनके लिए अब एक नया आयाम खुलेगा और उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।  इन्हीं बच्चों में से कोई न कोई भारत से अंतरिक्ष जाने वाला या वाली पहली अंतरिक्ष यात्री बन सकेगी।  जब वो दिन आएगा तो भारत चौथा देश होगा जो अपने बल पर अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्री भेज सकता है।  अब तक केवल रूस, चीन और अमरीका ही ये उपलब्धि अर्जित कर पाएं हैं। 
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